Opinion

..बाबा साहेब पुरंदरे होने का अर्थ

भारतीय इतिहास में शिवाजी महाराज विषय के अधिकारी ज्ञाता एवं हिंदवी संस्कृति – पुनरोत्थान के अग्रणी नायक पद्मविभूषण बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे उपाख्य बाबा साहेब पुरंदरे ने आज प्रात: लगभग साढ़े छह बजे गोलोक हेतु प्रस्थान किया। इसी वर्ष गत २९ जुलाई को आपने शतायु पूर्ण किया था।प्रज्ञा प्रवाह एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में बाबा साहेब पुरंदरे होने का अर्थ है शोध में आकाश की ऊँचाइयाँ लांघने और पाताल की गहराइयाँ नापने वाला नचिकेता… ऐसे समर्पित सत्यान्वेषी सदियों में होते हैं ईश्वरीय वरदान की तरह। उनके देहावसान पर इतिहास शोधक समाज शौकाकुल है और पूरा देश यों मौन है मानो काठ मार गया हो यह दुष्काल।

२९ जुलाई १९२२ को पुणे में जन्मे बाबा साहेब का प्रिय विषय शिवाजी महाराज रहे और मात्र १७ वर्ष की अायु में उनपर अद्भुत पुस्तक लिखकर उन्होंने अपने जीवन की महत्ता का संकेत दे दिया था। जीवन के पचास वर्षों तक निरंतर शिवाजी पर शोध करने के क्रम में उन्होंने ३३ किलाओं तथा लगभग तीस हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा की। वर्ष १९८५ में उन्होंने ‘ जाणता राजा’ नामक भव्य नाटक मराठी में लिखा जो अगले छह वर्षों तक लगातार संघर्ष के बाद जब मंचित हुआ तो दर्शक मंत्रमुग्ध हो गये। नाटक जितना भव्य था उतना ही शोधपरक। इसका आकर्षण ऐसा रहा कि सिनेमा हॉल में शाम को दर्शकों के टोटे पड़ने लगे। पूर्वोत्तर के महान नाटककार रतन थियम हों या राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अब्राहम अलकाजी या तमिल नाट्यपटु सी बालाचंद्र या फिर वाई जी महेंद्रन… सबकी बांछें खिल गयीं।

सिनेमाई राक्षस से मौलिक संस्कृति को बचाने का ऐसा गणितीय सूत्र सभी नाट्य कर्मियों को मिला कि अश्लील भाव भंगिमा ,द्विअर्थीय संवाद की फिसलन से लोकसंस्कृति के अनेक संवाहक न केवल बचे बल्कि नई ऊर्जा के साथ वे मैदान में आए।बाबा साहेब की अविस्मरणीय कृति ‘ जाणता राजा ‘ से प्रेरित हो देश भर में मूक होते नाट्यधर्मी अपनी कीर्तिसिंह में फिर से वाचाल हो गए।उन्होंने लोक नाटकों को न केवल बचाया बल्कि भारतीय वांग्मय से नए – नए विषय लेकर अपनी सीमित साधनों और कार्यक्षेत्र के बाद भी सिनेमा से जमकर लोहा भी लिया और उसको देश की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहने पर बाध्य भी किया।

प्रसिद्ध तमिल नाटककार वाई जी
महेंद्रन उस समय को याद करते हुए बताते हैं कि ‘ जाणता राजा’ ने सिनेमा के सस्ते मनोरंजन के आगे घुटने टेक चुके लोक नाटकों को नया जीवन दिया। भव्य पारसी थियेटर विधा अलाभकारी होने के कारण परिदृश्य से बाहर हो गया था। देश के अन्य भागों की लोक नाट्यकला भी इससे दुष्प्रभावों हुई। सिनेमाई दोष को स्थानीय नाट्य समूह ओढ़ने लगे थे ऐसे में ‘ जाणता राजा’ की अप्रतिम सफलता ने हम सबको संजीवनी दी दो कि नाट्यधर्मी की शुचिता से कोई समझौता नहीं करना चाहते थे और जिन्होंने मान लिया था कि अब उनके दिन पूरे हो गए हैं।

‘जाणता राजा ‘ की सफलता ने मंचीय कलाओं को नवजीवन दिया और भारतीय संस्कृति को कला माध्यमों में पुन: केंद्र विंदु बना दिया। पर यह यात्रा बाबा साहेब के लिए भी बहुत मुश्किल रही। इतिहास के शोध में जीवन के पचास वर्ष पूरे होने पर बाबा साहेब ने एक साक्षात्कार में इसका उल्लेख किया है।

‘ जाणता राजा’ नाटक लिखने के लिए बाबा साहेब ने शिवाजी महाराज के जीवन से जुड़े ३३ किलों एवं अन्य स्थलों की अनेक बार यात्राएँ कीं, उस समय को समझने के लिए उन्होंने शिवराय परंपरा में वर्णित जातियों एवं जनजातियों के बीच लंबा समय बिताया। लगभग ३० हजार किलोमीटर की यात्राएँ की। उसके बाद यह नाटक लिखा जा सका। जब नाटक करने की बारी आई तो संसाधन जुटाने में बाबा साहेब को खासी परेशानी हुई। शिवाजी प्रतिष्ठान भी यह कहते हुए उनका प्रस्ताव ठंढ़े बस्ते में डाल दिया कि नाटक द्वारा शिवाजी के जीवन को न्यायपूर्ण तरीके से नहीं दिखाया जा सकता।

लगभग छह वर्षों के संघर्ष एवं स्थानीय कलाकारों के सहयोग से ‘जाणता राजा ‘ का पहला प्रदर्शन हुआ तो दर्शकों ने दांतों तले ऊगलियाँ दबा लीं। मंच पर अतीत और वर्तमान को एक साथ रोशनी व ध्वनि के सुंदर प्रयोग द्वारा प्रस्तुत करने के बाबा साहेब के कौशल ने सबको उत्साहित कर दिया। देखते- ही -देखते महाराष्ट्र का कोना – कोना शिवाजी के पुनर्स्मरण से रोमांचित हो उठा। जल्दी ही इस नाटक के पांच अन्य भाषाओं में अनुवाद हुए तथा मंचन भी। अब तक इसके १२३४ प्रदर्शन हो चुके हैं।

बाबा साहेब का काम इतना प्रामाणिक है कि आजादी के अमृतोत्सव पर देश के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास लिखते समय प्रधानमंत्री ने लेखकों से अपील की कि उन मानदंडों को बनाए रखें जिनका पालन बाबा साहेब आजीवन करते रहे।

देश की ऐतिहासिक विभूतियों के बारे में शोध करके इतिहास लिखने और शिवाजी महाराज की वीर गाथा को जनता तक सही स्वरूप में पहुँचाने के बाबा साहेब के कामों की अर्धशती पूरे होने पर उनका विशेष साक्षात्कार लिया गया था। उसमें बाबा साहेब ने कहा है कि ‘ हर पीढ़ी को अपने महान राष्ट्र को और भी अधिक महान बनाने के लिए अपने राष्ट्रीय चरित्रों से प्रेरणा लेनी चाहिए। इस दृष्टि से शिवाजी महाराज का जीवन बहुत ही उपयोगी और प्रेरक है। उनकी प्रासंगिकता आज भी कायम है’।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि इतिहास ही हमारे अंदर स्वयं को पहचानने की भावना पैदा करता है और सही तथा गलत में अंतर करने की दृष्टि देता है। इतिहास से सबक लेकर हम अपने देश को और सुदृढ़ तथा समृद्ध बनाने की दिशा में काम कर सकते हैंं।

बाबा साहेब का काम इतना प्रामाणिक है कि आजादी के अमृतोत्सव पर देश के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास लिखते समय प्रधानमंत्री ने लेखकों से अपील की कि उन मानदंडों को बनाए रखें जिनका पालन बाबा साहेब आजीवन करते रहे।

देश की ऐतिहासिक विभूतियों के बारे में शोध करके इतिहास लिखने और शिवाजी महाराज की वीर गाथा को जनता तक सही स्वरूप में पहुँचाने के बाबा साहेब के कामों की अर्धशती पूरे होने पर उनका विशेष साक्षात्कार लिया गया था। उसमें बाबा साहेब ने कहा है कि ‘ हर पीढ़ी को अपने महान राष्ट्र को और भी अधिक महान बनाने के लिए अपने राष्ट्रीय चरित्रों से प्रेरणा लेनी चाहिए। इस दृष्टि से शिवाजी महाराज का जीवन बहुत ही उपयोगी और प्रेरक है। उनकी प्रासंगिकता आज भी कायम है’।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि इतिहास ही हमारे अंदर स्वयं को पहचानने की भावना पैदा करता है और सही तथा गलत में अंतर करने की दृष्टि देता है। इतिहास से सबक लेकर हम अपने देश को और सुदृढ़ तथा समृद्ध बनाने की दिशा में काम कर सकते हैं।

शिवाजी महाराज के जीवन में हर पीढ़ी के शानदार भविष्य गढ़ने और एक नया इतिहास रचने के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित करने की क्षमता है।’जाणता राजा ‘ तथ्यों और मूल्यों से भरा है।यह नाटक शिवाजी को एक सम्मानित नायक, अनुकरणीय प्रशासक तथा दूरदर्शी राजनेता के रूप में प्रस्तुत करता है।इसलिए हर घर में हर माता को चाहिए कि वह अपने बच्चे को शिवाजी की कहानी सुनानी चाहिए।

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