रज़ा अकादमी की स्थापना मुसलमानों को शिक्षित करने के नाम पर की गई और काम यह मुस्लिमों को राष्ट्रद्रोही बनाने का कर रहा है। इसके विभिन्न आंदोलनों से देश को लगभग २०० करोड़ रुपये की क्षति हो चुकी है।
रज़ा अकादमी की स्थापना इस्लामी साहित्य के प्रकाशन एवं वितरण के लिए १९७८ में बरेलवी मुस्लिमों के गुरू इमाम अहमद रज़ा बरेलवी के नाम पर की गई थी। इस उद्देश्य का वर्णन उसके गैर – सरकारी संगठन के रूप में पंजीयन के लिए दिये गए आवेदन में भी है, जिसके आधार पर उसे पंजीयन संख्या ५५६/ २००३ -०४ उत्तर प्रदेश शासन ने ४ दिसंबर २००८ को आवंटित किया है। इसका पंजीयन रज़ा वेलफेयर सोसाइटी के नाम पर कराया गया है। रज़ा अकादमी की पितृ संस्था पॉल फाउंडेशन है। इसके वर्तमान अध्यक्ष मौलाना हनीफ खान तथा मुख्य कार्यकारी सईद अमीन है।
अपनी स्थापना के शुरुआती वर्षों में, रज़ा अकादमी ने उर्दू, हिंदी, अरबी और अंग्रेजी भाषाओं में विभिन्न इस्लामी विषयों पर सैंकडों पुस्तकें प्रकाशित कीं पर इसके काम काज में आगे चलकर पशुपालन, डेयरी एवं मछली पालन का काम करना भी शामिल किया गया। फिर धीरे – धीरे यह सोशल ऑर्गेनाइजेशन बना दी गई।
सोशल ऑर्गनाइजेशन के रूप में दखल बढ़ाते ही इसने मुस्लिम जीवन पद्धतियों पर विचार व्यक्त करना और प्रशासनिक व राजनीतिक विषयों में भी हस्तक्षेप करना रज़ा अकादमी ने शुरू कर दिया।
म्यांमार में हो रहे रोहिंग्या मुसलमानों पर कथित सरकारी अत्याचार के विरोध के नाम पर रज़ा अकादमी के लोगों ने आजाद मैदान मुंबई में भारी तोड़फोड़ की, महिला पुलिसकर्मियों को घेरकर सामूहिक रूप से अपमानित करने किया।रज़ा अकादमी के उग्रवादियों ने पत्थरों से पचास से अधिक पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया था।उस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को गोलियाँ चलानी पड़ी थीं। बाद में पता चला कि १५०० कार्यकर्ताओं के संग शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की अनुमति लेकर ४० हजार लोगों की भीड़ जमा करके २०१२ में रजा अकादमी ने बवाल काटा। उस समय तीन करोड़ रुपये की सरकारी संपत्तियों को इसके समर्थकों ने नष्ट कर दिया था। इससे पहले २००६ में रज़ा अकादमी के उग्र प्रदर्शन में दो पुलिसकर्मी मारे गए थे।
रज़ा अकादमी २००६ से ही लगातार देश की सभी राज्य सरकारों से ‘मुहम्मद पैगंबर बिल’ पारित कराने की मांग करती आ रही है। इसके तहत मुहम्मद पैगंबर एवं इस्लाम के विरुद्ध अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने पर कठोर दंड की मांग की गई है। किंतु कोई मुसलमान अगर दूसरे धर्म या संप्रदाय को अपमानित करता है तो उसको दंडित करने पर ये चुप्पी साध लेते हैं।
तमिल बेवसीरीज ‘नवरस’ को प्रतिबंधित कराने , ईरानी फिल्म ‘ मोहम्मद दी मैसेंजर’ पर रोक लगाने की मांग करने, फ्रांस के एक कार्टूनिस्ट को सजा – ए- मौत दिलवाने जैसे बहाने से जनजीवन ठप करने और तोड़फोड़ एवं हिंसा करने में यह संगठन हमेशा आगे रहा है।
तीन तलाक को प्रतिबंधित किये जाने पर इसने आततायी विरोध का प्रयास किया है। ए आर रहमान के विरुद्ध फतवा जारी करने के साथ – साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन को पत्र लिखकर भारत में कोरोना के नियंत्रण के लिए दिये जानेवाले वैक्सीन का भी विरोध किया था।
इसके अध्यक्ष सईद नूरी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के माध्यम से भारत सरकार को बाध्य करने की विफल कोशिश की कि वह कोरोना पर नियंत्रण के लिए बनाए वैक्सीन का फार्मूला सार्वजनिक करे। नूरी ने जोर देकर कहा कि वैक्सीन में क्या – क्या मिलाया गया है, जबतक मोदी सरकार और वैक्सीन बनानेवाली कंपनी यह बात सार्वजनिक नहीं करेगी कोई मुसलमान वैक्सीन नहीं लगवाएगा। यह अलग बात है कि अधिकांश मुसलमानों ने, नूरी को दरकिनार कर वैक्सीन लगवा लिया।
भिवंडी में पुलिसकर्मियों के लिए भवन बनाने के लिए सुरक्षित रखी जमीन पर रज़ा अकादमी ने कब्जा कर लिया है। वर्ष २००७ में पश्चिम उपनगरीय रेलवे की कुछ ट्रैन में बम विस्फोट हुआ था जिसमें २०७ लोग मरे और लगभग ९०० लोग घायल हुए थे। उस कांड में भी रज़ा अकादमी लिप्त थी।