राममंदिर आंदोलन ने हिन्दुओं को स्वत्व का बोध कराया : अरुण कुमार
“श्री राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन कार्य केवल प्रतिक्रियात्मक आंदोलन नही था, अपितु दृढ निष्ठा एवं आस्था से जुड़ा आंदोलन था। ” यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहकार्यवाह अरुण कुमार ने कही। उन्होंने कहा कि “वह आंदोलन यशस्वी हुआ क्योंकि उद्देश्य में पवित्रता थी तथा इनके मार्गदर्शक बहुत ही प्रतिबद्ध थे। वे ‘सबके राम’ पुस्तक के विमोचन पर पर मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। यह पुस्तक अयोध्या के श्रीराम मंदिर के लिए किये गये “निधि समर्पण अभियान” में शामिल स्वयंसेवकों के अनुभवों पर आधारित है।
दिल्ली के कंस्टिच्यूशन क्लब में इस पुस्तक का विमोचन किया गया। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि श्रीराम मंदिर आंदोलन समस्त हिन्दू समाज के लिए एक ‘आत्मबोध’ करवाने वाला क्षण था। जब स्वामी विवेकानंद से पूछा गया, हमारी समस्याओं का मूल क्या है? इसपर स्वामी जी ने उत्तर दिया, हम ये भूल गए हैं कि हम कौन हैं, यही हमारी सारी समस्याओं की जड़ है। श्रीराम मंदिर आंदोलन से समस्त हिन्दू समाज को आत्मबोध का अवसर मिला। भारतीयोंने ५०० वर्ष तक अयोध्या के श्रीराम मंदिर के लिए आंदोलन किया।
इसके लिए आंदोलन स्वतंत्रता के बाद प्रारम्भ नहीं हुआ। वो तो पिछले ३५० वर्षो से अविरत जारी था। १६वीं सदी में जब आक्रांता बाबर ने श्रीराम मंदिर पर आक्रमण कर उसे तोड़ा तब से उस मंदिर के लिए संघर्ष चल रहा था।
विश्व हिन्दू परिषद के संयुक्त सचिव डॉ. सुरेंद्र जैन ने इस अवसर पर कहा कि वर्ष १९८३ के बाद विश्व हिंदू परिषद ने जनजागरण का काम प्रारंभ किया। १९४७में देश स्वतंत्र हुआ और १९५० में संविधान लागू हुआ, तो हिन्दू समाज में यह विश्वास जगा कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन जायेगा। लेकिन ३३ वर्षो तक कुछ भी नहीं हुआ।
१९८३ से इस भावना का पुनर्जागरण विहिप के मुजफ्फरनगर की सभा तथा उसके बाद हुए धर्मसंसद में किया गया। १९९२में कारसेवको ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया।
३३ वर्षो तक हिन्दू समाज ने धैर्य दिखाया, अपने देश की न्याय व्यवस्था पर विश्वास दिखाया और उन्हें यह विश्वास था कि उन्हें न्याय जरूर मिलेगा।
लेकिन जब उन्हें ऐसा महसूस होने लगा कि क़ानूनी प्रक्रिया द्वारा विषय को अनावश्यक खींचकर हिंदू समाज को धोखा दिया जा रहा है, तो १९९२ में हिन्दू समाज जागृत हुआ। १९९२ की घटना ने यह साबित कर दिया कि इस देश में हिन्दू समाज की भावनाओं को अब नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि इस आंदोलन की विशेषता यह रही कि इसने हिन्दू समाज के बारे में फैलाये गए मिथ्यकों, जैसे हिन्दू कभी एकजुट नहीं हो सकते क्योंकि वे हमेशा जाति, भाषा, क्षेत्र, छोटे- छोटे समूह आदि में हमेशा बंटे हुए हैं आदि को ध्वस्त कर दिया । इस आंदोलन ने यह मान्यता झुठला दी कि हिन्दू समाज एक भीरु समाज है जिसमें संघर्ष करने की क्षमता नहीं है। तीसरा भ्रम यह भी टूटा कि हिन्दू समाज की चमक, पश्चिमी शिक्षा तथा मूल्यों का पिछले २०-२५ वर्षो में पूरी तरह क्षरण हो चुका है।
कभी ऐसा भी समय आया जब इस आंदोलन कई लोगो ने अपनी जान गवाई लेकिन आंदोलन हमेशा जीवित रहा। पहले दिन से यह स्पष्ट था, कि इस आंदोलन में हर कोई अपना योगदान देगा।
आख़िरकार २०१९ में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। छह हफ़्तों तक चले इस अभियान में कुल ६००० करोड़ रुपये की राशि एकत्रित की गयी।
१९८९ के शिलान्यास की तरह ही निधि समर्पण अभियान भी वाल्मीकि मंदिर दिल्ली से ही प्रारम्भ किया गया। सारे दानवीरों में ३/४ लोग ऐसे थे जिन्होंने दस हज़ार या उससे काम निधि का सर्यपण किया।
देश के ६ लाख गाँवों में ५,३४,००० गाँवों तक यह अभियान पहुँच पाया।
उन्होंने यह भी स्मरण करवाया कि प्रवास अभी जारी है तथा राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया अविरत जारी रहेगी।
“प्रभु श्रीराम हमारा हमेशा मार्गदर्शन करते रहेंगे कि हम समानता से भरा तथा समृद्ध समाज का निर्माण कर सकें। आने वाले वर्षों में हमारा ध्येय समृद्ध भारत का निर्माण ही होगा।