प्राचीन भारत के विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक:- भाग 3
विशेष माहिती श्रृंखला – (3-7)
1]महर्षि अगस्त्य की ‘अगस्त्य संहिता’:
आधुनिक विज्ञान थॉमस एल्वा एडिसन को बिजली का आविष्कारक मानता है। पर कम ही लोग जानते होंगे कि इसके अविष्कारक ऋषि अगस्त्य थे, जिनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। उनके ग्रंथ ‘अगस्त्य संहिता’ में विद्युत उत्पादन से संबंधित एक आश्चर्यजनक सूत्र है। वर्ष 1891 में पुणे से इंजीनियरिंग करने के बाद प्राचीन भारतीय ग्रंथों में निहित वैज्ञानिक सूत्रों के अध्ययन व विश्लेषण में पूरा जीवन खपा देने वाले भारतीय विद्वान राव साहब कृष्णाजी वझे को उज्जैन में दामोदर त्र्यम्बक जोशी के पास शक संवत् 1550 के अगस्त्य संहिता के कुछ पन्ने मिले। इन पन्नों में यह सूत्र अंकित था –
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं
सुसंस्कृतम् ।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभिः
काष्ठापांसुभिः ।। दस्तालोष्टो निधात्वयः
पारदाच्छादितस्ततः ।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम् ।।
अर्थात् एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें पहले ताम्र पट्टिका डालें। फिर शिखि ग्रीवा डालें और बीच में लकड़ी का गीला बुरादा डालने के बाद पारे का प्रयोग कर ताम्र पट्टिका के तारों को मिलाने पर ‘मित्र वरुणशक्ति’ का उदय होगा। इसे पढ़कर उन्हें लगा कि यह ‘डेनियल सेल’ से मिलता-जुलता है। लिहाजा, वे नागपुर में संस्कृत के विभागाध्यक्ष डॉ. एम.सी. सहस्रबुद्धे से मिले तो उन्होंने नागपुर में इंजीनियरिंग के प्राध्यापक पी.पी. होले को इस सूत्र की सत्यता जांचने को कहा। उपर्युक्त वर्णन के आधार पर होले तथा उनके मित्र ने तैयारी शुरू की। उन्होंने सारी सामग्री तो जुटा ली, पर शिखि ग्रीवा समझ में नहीं आया।
संस्कृत कोश में देखने पर इसका अर्थ मिला- मोर की गर्दन। इसके बाद वे एक आयुर्वेदाचार्य से मिले। वे सारी बात सुन हंसकर बोले, “यहां शिखि ग्रीवा का अर्थ मोर की गर्दन नहीं, अपितु उसकी गर्दन के रंग जैसा पदार्थ कॉपर सल्फेट है।” समस्या हल हो गई और इस आधार पर निर्मित इलेक्ट्रिक सेल का प्रदर्शन 7 अगस्त, 1990 को स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था, नागपुर के चौथे वार्षिक अधिवेशन में किया गया था।