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पाकिस्तान में महायोगी गोरखनाथ के प्राचीन मठ की खोज


पाकिस्तान के पुरातत्व विभाग ने जिला झेलम के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र के कोहिस्तान नमक की एक दुर्गम चोटी पर उत्खनन द्वारा महायोगी गोरखनाथ के प्राचीन मठ के पुरावशेषों को खोज निकाला है। पाकिस्तान समाचारपत्रा डॉन के अनुसार पुरातत्व विभाग का दावा है कि ये पुरावशेष ई.पू. तीसरी-चौथी शताब्दी से संबंधित हैं। इन अवशेषों में कुछ शिलालेख भी मिले हैं जिनको अभी तक पाकिस्तानी पुरातत्ववेता पढ़ पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। 


जिस जगह से ये पुरावशेष प्राप्त हुए हैं उसका नामक टीला जोगियां है। यहां पर अनेक गुफाएं, योगियों की समाधियां आदि मौजूद हैं। इन भवनों पर लगे शिलालेख फारसी भाषा में हैं जिनके अनुसार इनका निर्माण मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में किया गया था। अकबर के बेटे जहांगीर ने भी अपनी आत्मकथा ‘तौजिक जहांगिरी’ में इस बात का उल्लेख किया है कि उसने टीला जोगियां में जाकर वहां पर रहने वाले अनेक योगियों के दर्शन किए थे और उनसे योग विद्या के बारे में विस्तृत चर्चा की थी। महाराजा रंजीत सिंह के शासनकाल में वहां पर एक गुरुद्वारे का भी निर्माण किया गया था जिसके बारे में कहा जाता है कि टीला जोगियां में गुरुनानक देव जी ने भी आकर योगियों से योग विद्या के बारे में कई दिनों तक धर्म चर्चा की थी। अहमद शाह अब्दाली के हमले के दौरान इन सारे क्षेत्र को ध्वस्त कर दिया गया था मगर महाराणा रंजीत सिंह के आदेश से वहां पर अनेक भवनों का पुनर्निर्माण किया गया। 


अंग्रेज इंतिहासरकार George  Weston  Briggs  ने आपनी बहुचर्चित  पुस्तक  गोरखनाथ मे यह दावा किया हैकि गुरु गोरखनाथ का जन्म 9वीं-10वीं इस्वी में हुआ था। मगर इस दावे को इसलिए विश्वसनीय नहीं माना जाता सकता क्योंकि 12वीं शताब्दी में लिखित फारसी के इतिहास तब्बाके नासिरी के अनुसार 1190 में बख्तिायार खिलजी ने गोरखपुर स्थित गोरख मठ पर हमला करके उसे लूटा था और उसे जला दिया था। तिब्बत के बौद्ध विद्वान तारानाथ के अनुसार गुरु गोरखनाथ का जन्म उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल से 100 वर्ष पूर्व हुआ था और उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई भृतहरि को दीक्षा देकर योगी बनाया था। नेपाल में गोरख जिला में एक गुफा मौजूद है जिसके बारे में कहा जाता है कि उस गुफा में गुरु गोरखनाथ ने कई वर्षों तक तप किया था। इस गुफा में एक शिलालेख है जो कि 335 ई.पू. का है। तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार इस देश में 84 सिद्ध हुए थे और नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक मत्स्येन्द्रनाथ उर्फ मीनपा थे। नाथ संप्रदाय की स्थापना हिंदू कर्मकांड और बौद्ध वज्रयान के प्रतिरोध के रूप में हुई थी। सबसे खास बात यह है कि 84 सिद्धों में से कोई भी उच्च जाति से संबंधित नहीं था। सभी का संबंध दलितों और आदिवासियों से था। खास बात यह है कि नाथ संप्रदाय के ग्रंथ गोरखवाणी के अनुसार नाथ संप्रदाय का जन्म ही वर्ण व्यवस्था और वैदिक कर्मकांड के खिलाफ हुआ था। यही कारण है कि नाथ संप्रदाय जनसाधारण में बहुत लोकप्रिय हुआ। नाथ संप्रदाय के अनुयायियों में सभी धर्मों के योगी शामिल होते हैं। आज भी पाकिस्तान में एक लाख से अधिक मुस्लिम योगी हैं  जो कि अपना मुर्शिद-ए-आला (श्रेष्ठ गुरु) गोरखनाथ को मानते हैं। पाकिस्तानी ग्रामीण क्षेत्रों में ये योगी जड़ी बुटियों से विभिन्न रोगों का इलाज करते हैं। विभिन्न भाषाओं के समिश्रण से उत्पन्न साधुरी भाषा में वे भृतहरि, पूर्ण भगत और शालिवाहन लूना की लोकगाथाएं तुंबे और सारंगी पर गाते हैं।

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