विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान:भाग 7
विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 7 (7-30)
प्राचीन भारत के मंदिरो की अद्भुत वास्तुकला;
बर्टन डेवल लिखते हैं, भारतीय कला को समझने के लिये इसे भारतीय दर्शन के उस परिप्रेक्ष्य में देखना होगा जिसने इसके कलाकारों व प्रशसंकों दोनों को प्रेरणा दी। भारतीय भव्य स्मारकों की कारीगरी को देखकर उसके सामने नतमस्तक होना ही पड़ता है। सूक्ष्म कला से भरपूर होने के बावजूद इन संरचनाओं में प्रत्येक भाग को विशेष कल्पनाशक्ति के साथ अपने-अपने समुचित स्थान पर इस प्रकार रखा गया है कि सौन्दर्यपरकता व संपूर्णता में पूरा संतुलन दिखायी पड़ता है।
कांचीपुरम स्थित वैकुंठ पेरूमल मंदिर । भारतीय शिल्पकारों ने ऊपर से नीचे भूमि तक भार अंतरण की तकनीक में निपुणता प्राप्त कर ली थी। ऐसा करने के लिये उन्होंने संतुलन प्रतिसंतुलन और आहे भार-धारक शहतीरों का उपयोग बड़ी सफलता के साथ किया है।
सूर्य मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है। यह मंदिर आदित्यनारायण को समर्पित, भारत के चार सूर्य मंदिरों में से एक है तथा अपनी भव्य सज्जा (Ornamentation) के लिये विख्यात है। इसके साथ लगा तालाब वास्तुकला व अभियांत्रिकी दक्षता का एक उत्तम उदाहरण है।
तालाब, मंदिर और नागरिक प्रशासन के अभिन्न अंग होते थे। तालाबों के अभिकल्पन में सौंदर्यपरकता व वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों का ही समावेश रहता था । उदाहरणतः, अंतर्प्रवाह (Inflow) निकास, प्लावन (Overflow) आदि व्यवस्था का समावेश ।
रानी की वाव एक सोपानी कुंआ (Stepwell) है जिसका निर्माण सोलंकी राजवंश की रानी उदयमती द्वारा करवाया गया था। विश्व भर में यह अपने प्रकार का अकेला और सबसे बड़ा (7 मंजिल गहरा) सोपानी कुआं है । इस संरचना में जमीन के नीचे से भूमितल तक की निर्माण कला का प्रदर्शन है।
इस प्रकार की सैन्य एवं आवासीय वास्तुकला की डिजाइन, शत्रु के आक्रमण के विरूद्ध दूसरी सुरक्षा प्रणाली के रूप में की गयी थी । आमतौर पर अंदर रहने वालों के उपयोग हेतु, एक भूमिगत नाली के माध्यम से किसी बाह्य स्रोत से पानी व्यवस्था इस प्रकार की जाती थी कि शत्रु को इसकी जानकारी न मिल सके ।