विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान: भाग 9
विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 9 (9-30)
विश्व को अमूल्य उपहार विक्रम संवत्;
प्रमुख हिंदू संवत्धार्मिक, ऐतिहासिक और कालक्रम के रिकार्ड हेतु प्रत्येक सभ्यता का अपना कैलेंडर होता है। कैलेंडर का आरंभ किसी संवत् या शक से होता है जिसका आंरंभिक बिंदु किसीमहत्वपूर्ण घटना की स्मृति से जुड़ा होता है। हिंदुओं में अधिकतर कलि, विक्रम व शालिवाहन संवतों का उपयोग किया जाता है।
विक्रम संवत्:
यह, साइथिया वासियों (शर्मा) पर विजय के स्मरणोत्सन के रूप में मनाने के लिए उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य द्वारा आरंभ किया गया था 58 ई. पू. की दीपावली के बाद, कार्तिक मास की शुक्ल प्रतिपदा को शक संवत् का आरंभ हुआ था। गुजरात में आज भी यह प्रचलित है। उत्तरी भारत के कुछ भागों में भी थोड़े से परिवर्तन के साथ विक्रम संवत् का प्रचलन है। नव वर्ष का आरंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है।
शालिवाहन संवत्
पैठण (महाराष्ट्र) के राजा शालिवाहन ने 78 ई. पू. में इस संवत् को आरंभ किया था। संवत् का आरंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है जिसे गुड़ी पड़वा कहा जाता है। संप्रति आंध्र, कर्नाटक व महाराष्ट्र आदि में इसे नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।भारत के कुछ भागों में वैशाखी व बीहू आदि दिनों पर नववर्ष मनाया जाता है।
हिंदू मास
मास, पक्ष और तिथि, हिंदू कैलेंडर के महत्वपूर्ण अंग हैं । चांद, पूर्णिमा के दिन जिस नक्षत्र में होता है हिंदू चंद्र मास का नाम उसी नक्षत्र के नाम पर रखा गया है। मास का नाम पता लग जाने पर, आकाश में तारों के स्थान का स्वतः ही ज्ञान हो जाता है ।सारणी में हिंदू चंद्रमास, पूर्णिमा के दिन चांद के नक्षत्र का नाम और उनके पाश्चात्य समतुल्य तारकों के नाम दिये गये हैं।
अधिकमास अथवा पुरूषोत्तम मास।
365.256 दिन के सौर वर्ष और 354.372 (29.531X12) दिन के चंद्र वर्ष का अंतर 10.884 दिन का है । यदि यह अंतर संचित हो जाये तो चंद्र मास और ऋतुओं का आपसी मेल समाप्त हो जाएगा । अतः जब सौर मासों व चंद्र मासों का अंतर कुल मिलाकर एक चंद्रमास के बराबर हो जाता है तब वर्ष के बीच में एक अधिक मास जोड़ दिया जाता है। ऐसा 33 सौर मासों में एक बार होता है ।
सामान्य चंद्र वर्ष में, प्रति मास सौर संक्रमण अर्थात सूर्य का अगली राशि में प्रवेश होता है । अधिकमास में संचित सौर संक्रमण 360 डिग्री हो जाता है ।
तिथि और नक्षत्र की अद्वितीय हिंदू संकल्पना तिथि पर सूर्य और चंद्रमा की, पूर्व की ओर, औसतन दैनिक गति क्रमशः 1 डिग्री और 13.33 डिग्री है । अतः, सूर्य की अपेक्षा चांद 12.33 (13.33-1) डिग्री प्रतिदिन आगे बढ़ जाता है ।
शुक्ल पक्ष में सूर्य व चंद्रमा की दूरी लगभग 12 डिग्री प्रतिदिन बढ़ जाती है और कृष्ण पक्ष में इनकी यह दूरी लगभग उतनी ही कम हो जाती है । जब इनकी दू 12.33 डिग्री का परिवर्तन होता है तब एक तिथि पूरी म जाती है । तिथि की जानकारी से हमें निम्नलिखित बातों तुरंत ज्ञान हो जाता है।
• सूर्य और चंद्रमा के बीच की कोणीय दूरी
• चंद्र कला का ज्ञान
• चंद्रमा के उदय व अस्त का समय
-सूर्य की स्थिति
• दिन में उच्च व निम्न ज्वारभाटा का लगभग समय
नक्षत्र चंद्रमा लगभग 25 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है। हिंदुओं ने क्रांतिवृत्त को 27 नक्षत्रों में विभाजित किया है । इससे स्पष्ट है कि चंद्रमा की गति लगभग एक नक्षत्र प्रतिदिन है। दिन विशेष की तिथि व उसके नक्षत्र की जानकारी होने पर, आकाश में तारा समूहों या राशि चक्र की स्थिति का स्वतः ही ज्ञान हो जाता है।