विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान: भाग 19
विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 19 (19-30)
पाई (TT) का भारतीय इतिहास
आर्यभट (476 ई.) पहले गणितज्ञ थे जिन्होंने पाई (7) का लगभग परिमित मान निकाला था ।
अयुतद्वय विष्कम्भस्य आसन्नो वृत्तपरिणाहः
सौ में चार जोड़कर, उसे 8 से गुणा करें और उसमें 62000 जोड़े । यह योगफल 20000 व्यास के वृत्त की परिधि का लगभग माप होगा अर्थात 20000 व्यास के वृत्त की परिधि 62832 होगी। इस प्रकार उनके अनुसार = 3.1416 जो 4 दशमलव स्थानों तक आज भी सही है।
केरल के विख्यात गणितज्ञ माधव (1340-1425) को ज्ञात था कि एक अबीजीय (Transcendental) संख्या है और उन्होंने भूत सांख्य पद्धति में इसका और अधिक परिशुद्ध मान दिया।
विबुधनेत्रगजाहि हुताशन त्रिगुणवेदभवारण बाहवः नवनिखर्वमितेवृतिविस्तरे परिधिमानमिदं जगदुर्बुधाः
अर्थात 9×10 l व्यास के वृत्त की परिधि 2827433388233 होती है अर्थात = 3.14159265359 जो 11 दशमलव स्थानों तक सही है।
उनके बाद के केरल गणितज्ञों की पुस्तकों ‘कर्णपद्धति‘ तथा ‘सदारत्न माला’ में एक पद्य में का मान 16 दशमलव स्थानों तक 3.1415926535897932 दिया है। भारती कृष्णतीर्थ ने कतपायदी कोड में का मान 31 दशमलव स्थानों तक 3.1415926535897932 846264382792 निम्न सूत्र में दिया है।
यह पद्य भगवान कृष्ण तथा भगवान शिव की स्तुति समझा जाता है । अजीब इत्तफाक है कि फ्रांसीसी भाषा में 4 पंक्तियों की एक कविता मे का यही मान दिया गया इस के लिये इस पद्य में प्रयुक्त 32 शब्दों में प्रत्येक में प्र वर्गों की संख्या को गिनना पड़ता है।