विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान:भाग 27
विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 27 (27-30)
हड़प्पा काल में नौपरिवहन और भारतीय विज्ञान
मोहनजोदड़ों और हड़प्पा विख्यात पुरातात्विक खोजें है जिनका समय 3500 ई. पू. के लगभग आंका गया है। भारत एवं पाकिस्तान में उस काल के कई स्थल पाये गये हैं।
इस तथ्य के कई प्रमाण मौजूद है कि भारत की समुद्र विज्ञानी धरोहर 5000 वर्ष से अधिक पुरानी है और तत्कालीन नाविक समुद्री यात्रा, नीपरिवहन ( novigation) तथा व्यापार में अत्यंत दक्ष थे। ‘नेवीगेशन शब्द ही संस्कृत शब्द नावगति से बना है। समुद्री यात्राओं का मुख्य उद्देश्य व्यापार था सांस्कृतिक एवं धार्मिक संबंध इस के स्वाभाविक परिणाम थे .
मोहनजोदड़ो काल का समुद्र व्यापार केंद्र
3000-1750 ई. पू. की सिंधु घाटी सभ्यता के मोहनजोदडों तथा लोथल जैसे स्थल इस दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। खभात की खाड़ी के उत्तरी सिरे पर स्थित लोथल, पश्चिम एशिया तथा अरब देशों से व्यापार के लिये भारत का एक प्रवेश द्वार रहा होगा। पश्चिमी तट के समुद्री व्यापार के कारण, स्थानीय राजाओं ने, खंभात की खाड़ी के जटिल मुहाने पर आने वाले जहाजों को सुरक्षित रास्ता दिखाने के लिये अपने जहाज नियुक्त किये थे।
फारस की खाड़ी में बहरीन व फैलाका तथा सुमेरू के ऊर बंदरगाह की गोलाकार मोहरों पर सिंधु सभ्यता के प्रतीक चिन्ह तथा दो हिरण अंकित हैं। इन मोहरों का उपयोग फारस की खाड़ी में व्यापार के लिये किया जाता था। लोथल से प्राप्त मिश्री ममी का टेराकोटा माडल इस बात की पुष्टि करता है कि हड़प्पा तथा फारस की खाड़ी के लोग समुद्री रास्ते से व्यापार करते थे।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त पात्र पर मस्तूलवाली नाव अंकित है। एक मोहर पर दो चिड़ियों सहित एक जहाज की आकृति पायी गयी है। लोथल में खुदाई के दौरान मस्तूल वाले और बिना मस्तूल के जहाजों के पांच टेराकोटा-माडल मिले हैं। विख्यात नौपुरातत्ववेत्ता तथा इतिहासकार, डा. एस. आर. राव का निष्कर्ष है कि हडप्पा के नाविक ग्रीस द्वारा व्यापारिक हवाओं की खोज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व ही दक्षिण पश्चिमी तथा उत्तर-पूर्वी हवाओं की नियमितता से परिचित थे।
शिल्पकृतियों, चित्रों व सिक्कों पर अंकित जहाज
सिंधु घाटी काल (3000ई.पू.) की एक मोहर पर अंकित जहाज इस प्रकार का प्राचीनतम उदाहरण है। इस में जहाज के अगले (bow) व पिछले (Stern) दोनों भाग उठे हुये हैं । मध्यभाग में एक कमरा है । मस्तूल की अनुपस्थिति से ऐसा लगता है कि यह नदी में उपयोग के लिये है एक अन्य जहाज का चित्र मोहनजोदड़ों से प्राप्त बर्तन पर पाया गया है। इसमें एक मस्तूल है और दूसरे सिरे पर कई नाविक बैठे हैं ।
सांची की शिल्पकृतियों ( दूसरी शताब्दी ई.पू.) में भी भारतीय जहाजों का चित्रण है। सांची स्तूप के पूर्वी द्वार पर तीन व्यक्तियों सहित नदी में चलती एक नौका चित्रित है। दो व्यक्ति नौका चला रहे हैं तथा तीसरा व्यक्ति किनारे पर खड़े चार व्यक्तियों की ओर देख रहा है। संभवतः यह किसी पुजारी की यात्रा का चित्रण है। अन्य कई दृश्य भी यहां चित्रित हैं।