पतित प्राध्यापक-पत्रकार-लेखक भी हिन्दूद्रोह करके उन्नति पाते हैं
‘हिन्दुओं को हलुआ समझते हैं’ श्रृंखला भाग २
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से जुड़े जेएन मेडिकल कॉलेज में फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ जितेंद्र कुमार अपनी कक्षा में यौन अपराधों के बारे में पढ़ा रहे थे। पॉवरपॉइंट प्रेजेंटेशन में वे विषय की व्याख्या करते थे, डॉ कुमार ने हिंदू देवताओं के लिए अपमानजनक संदर्भ दिए। बलात्कार के एक संक्षिप्त इतिहास को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए, उन्होंने बलात्कार को हिंदू देवी-देवताओं से जोड़ा। हालाँकि, कुमार को जाँच लंबित रहने तक विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया गया था, लेकिन उनके खिलाफ की गई किसी भी सख्त कार्रवाई पर अभी कोई अपडेट नहीं है।
राजेश झा
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज में इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल ने भी ज्ञानवापी विवादित ढाँचे में मिले शिवलिंग को लेकर सोशल मीडिया पर अपमानजनक पोस्ट किया था। उन्होंने कहा था कि अगर वह शिवलिंग है, तो ऐसा लगता है कि शायद शिव जी का भी खतना हुआ था। प्रोफेसर रविकांत चंदन ने ज्ञानवापी विवादित ढाँचे पर एक बहस के दौरान टिप्पणी की थी कि पंडितों द्वारा परिसर में हो रही अवैध गतिविधियों को कथित रूप से देखने के बाद इसे औरंगजेब द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था। उन्होंने जिस किताब और कहानी का जिक्र किया, उसका किसी ऐतिहासिक दस्तावेज में कोई जिक्र नहीं है। यहाँ तक कि किताब के लेखक ने खुद किताब को गंभीरता से नहीं लेने का सुझाव दिया था।
स्वतंत्र पत्रकार रकीब हमीद नाइक, एक कुख्यात हिंदू-फोबिक तत्व, ने ज्ञानवापी में शिवलिंग को बदनाम करने के लिए व्हाइट हाउस की एक तस्वीर और उसके सामने का एक फव्वारा लगाया। तथाकथित ‘पत्रकार’ के अनुसार, सर्वेक्षण दल को शिवलिंग नहीं मिला, बल्कि एक फव्वारे का पता चला है, जिसका उपयोग हिंदू पक्ष द्वारा ज्ञानवापी के स्वामित्व के लिए किया जा रहा है।
यहाँ तक कि सबा नकवी ने ज्ञानवापी परिसर के अंदर मिले शिवलिंग का उड़ाने के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की एक तस्वीर साझा की। हालाँकि इसे आलोचना के बाद अब डिलीट कर दिया है।शुक्रवार (10 जून 2022) को भारतीय महिला प्रेस कॉर्प्स ने एक बयान जारी कर दिल्ली पुलिस द्वारा सबा नकवी के खिलाफ अशांति पैदा करने के इरादे से झूठी सूचना को बढ़ावा देने के आरोप में दर्ज किए गए केस की निंदा की थी। उन्होने लिखा -सबा एक महत्वपूर्ण सहयोगी हैं हम भगवान शिव पर उनके घृणित बयानों का समर्थन नहीं करती और अपमानित महसूस करती हैं ।सबा नकवी को यह भी सहन नहीं हो रहा है कि उत्तर प्रदेश में देश का सबसे बड़ा एयरपोर्ट बनने जा रहा है।
बरखा दत्त दिल्ली दंगों को लेकर हिन्दू विरोधी रिपोर्टिंग को लेकर चर्चा में हैं। दिल्ली दंगों में ज्यादा नुकसान हिंदुओं का हुआ है, लेकिन बरखा ने जानबूझकर मुस्लिमों को पीड़ित बताने की कोशिश की। इतना ही नहीं बरखा दत्त ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगे को मुस्लिम नरसंहार साबित करने की कोशिश की। शाहरुख खान, ताहिर हुसैन और पथराव करती बुर्का पहनी महिलाओं को छोड़ बरखा की कोशिश मुस्लिमों को पीड़ित दिखाने की रही। बरखा दत्त ने अपनी सालों से सींची गई प्रोपेगेंडा पत्रकार की भूमिका का बखूबी निर्वाह करते हुए इस हिन्दू विरोधी दंगों की रिपोर्टिंग में भी जानबूझकर हिन्दू विक्टिम्स को दरकिनार किया और सारा फोकस मुस्लिम पीड़ितों पर ही बनाए रखा, जिससे इन दंगों को मुस्लिम नरसंहार साबित किया जा सके, जबकि जमीनी वास्तविकता ठीक इससे उलट है।लेकिन उनका यह प्रोपेगेंडा सोशल मीडिया यूजर्स के सामने पल भर में धराशाई होते दिखा, जब उन पर चारों तरफ से इस इकतरफा रिपोर्टिंग को लेकर सवाल आने शुरू हो गए।
लोगों ने उनसे पूछना शुरू कर दिया कि क्यों वो दंगे की बलि चढ़े हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल और मुस्लिम फ़सादियों की बर्बरता के शिकार हुए आईबी के अंकित शर्मा के यहाँ नहीं गईं? उनकी उपलब्धियों में से एक जो सबसे बड़ी उपलब्धि थी वह थी दंगों को या हिन्सा को एक रंग दे देना। छोटी छोटी बातों पर लड़ने वाले बच्चों को हिन्दू और मुसलमान कर देना। हर चीज़ को हिंदु और मुसलमान करते हुए हिन्दुओं को दोषी ठहरा देना। हाल ही में सीएए विरोधी आन्दोलनों में उनकी उपलब्धि और निखर कर आई जब वह खुले आम उस आन्दोलन में सरकार को घेरती हुई नज़र आईं जो आन्दोलन भारतीय लोकतंत्र के मंदिर संसद में दोनों ही सत्रों में बहुमत से पारित हुआ था। कश्मीर में आतंक का पर्याय बन चुके बुरहान वानी को एक भटका हुआ युवक बनाने की उनकी उपलब्धि के तो पूरे कश्मीरी मुसलमान कायल थे।
बरखा दत्त के हिन्दू विरोधी रिपोर्टिंग पर महाग्रंथ तैयार हो सकता है तो अयूब राणा के कुकृत्यों पर पूरा प्रबन्धशोध तैयार हो सकता है।अमेरिका की हिन्दू-विरोधी राजनीतिक विशेषज्ञ क्रिस्टीन फेयर ने ट्विटर पर भारतीय प्रोपेगंडाबाज पत्रकार राणा अयूब को जम कर लताड़ा। उन्होंने आरोप लगाया कि राणा अयूब भारतीय होने के बावजूद पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई की कठपुतली की तरह व्यवहार करती हैं।हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राणा अयूब की पुस्तक ‘गुजरात फाइल्स’ को नकारते हुए कहा था कि यह अनुमानों और कल्पनाओं से भरा पड़ा है। राणा अयूब अक्सर संघ, भाजपा और उनके समर्थकों को निशाने पर लेती रहती हैं। अमित शाह के केंद्रीय गृहमंत्री बनने के बाद राणा अयूब काफ़ी खफा नज़र आई थीं।राणा अयूब हिंदुत्व को कोसते-कोसते उस गड्ढे में जाकर गिर पड़ी हैजहाँ पर उन्हें पाकिस्तान की तारीफ सुहाती है लेकिन वे ये नहीं समझ पातीं कि मुस्लिम पत्रकारिता करते करते जिस देश में वह रहती है, वे अब उसी के ख़िलाफ़ अपनी नफरतें जाहिर करने लगी हैं।राणा अयूब जैसे पत्रकार खुलेआम सिर्फ़ इस्लामोफोबिया के प्रोपगेंडे को आगे बढ़ाकर केंद्र सरकार को कोस रहे हैं।
बता दें कि राणा अयूब अपने देश में वित्तीय धाखाधड़ी करने के कारण भी सुर्खियों में रही थी। हाल में ही ईडी ने उनपर कड़ी कार्रवाई करते हुए 1.77 करोड़ रुपये जब्त किए थे।ईडी के एक अधिकारी के अनुसार अय्यूब ने कथित तौर पर तीन अभियानों के लिए दान में मिले पैसे के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल निजी खर्चों के लिए किया था। मनी लॉन्ड्रिग मामले में जांच का सामना कर रहीं पत्रकार राणा अयूब के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र-जिनेवा ने कहा है कि उनका न्यायिक उत्पीड़न किया जा रहा है। राणा अयूब के खिलाफ अब कर्नाटक के हुबली धारवाड़ पुलिस ने उड्डपी कॉलेज में भगवा झंडा लहराने वाले छात्रों को आंतकवादी बताने वाले मामले में FIR दर्ज की गई है। कर्नाटक में हिजाब को लेकर शुरू हुए विवाद को लेकर 13 फरवरी को 2022 को बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उड्डपी के कॉलेज के छात्रों को आतंकी करार दिया था। राणा ने बीते दिनों अमेरिकी सरकार से अपील की थी कि वो भारत में मुसलमानों पर हो रहे कथित अत्याचार को रुकवाए।राणा अयूब ने अपनी किताब में दावा किया था कि गुजरात के दंगों में मोदी का हाथ था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में जब उन्हें पेश होना पड़ा, तो कहा कि अपने आरोप के समर्थन में उनके पास कोई सबूत नहीं हैं।
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स्पष्ट है , लिबरल -अर्बन नक्सल भारतद्रोही’ लोग हिन्दुओं को चिढ़ाने और उनके आराध्यों को नीचा दिखाने तथा भारत का वातावरण तनावपूर्ण बनाने से बाज आएंगे।इसका कारण यह है कि हिन्दूको कृष्ण की तरह शिशुपाल की एक सौ अपराधों के पूर्ण होने जकी प्रतीक्षा रहती है और ये दुष्ट रक्तबीज हरबार नया रूप धरकर नीचता करने आ जाते हैं।कोई शिशुपाल सौ की गिनती तक पहुंचे उससे पहले दूसरा शिशुपाल सामने आ जाता है फिर उसके अपराधों की गिनती नए सिरे से शुरू होती है। इस तरह न अपराधी के अपराधों की गिनती सौ का आंकड़ा छूती है और न ही कृष्ण उसका बध करते हैं। इस तरह कृष्ण को लगातार नीचे दिखानेवालों का मनोबल बढ़ता जाता है और समाज में यह नैरेटिव बनता है कि – शिशुपाल ठीक कह रहा है और वही बली भी है। यह शिशुपाल कभी फिल्मकार तो कभी कॉर्पोरेट या किसी विश्वविद्यालय का प्राध्यापक अथवा राजनीतिक पार्टियों के रूप में सामने आकर हिन्दुओं को अपमानित करते रहता हैं।
हिन्दू समाज और हिंदुत्ववादी सरकारों की कमी यह है कि उन्होने भी अपने आराध्यों और प्रेरणास्थलों को पर्याप्त सम्मान नहीं देते हैं। यह ऐसा विषय है जो सिर्फ कानून से नहीं स्थापित होगा बल्कि हमें इसके लिए विशेष प्रयत्न करना होगा , पूछना होगा -देश के कितने विमानों, सड़कों, शहरों के नाम हिंदू देवी देवताओं के नाम पर हैं, कितने प्रतिशत छुट्टियां हिंदू त्योहारों पर होतीं हैं? हमारे पाठ्यपुस्तकों में कितना स्थान इनको मिला है ?