अपराधी चिश्तियों को बचाने में लगी पुलिस मुख्य आरोपी मुस्लिम थे और पीड़िताएं हिंदू
( अजमेरशरीफ के बदमाश चिश्ती भाग ४ )
नफीस चिश्ती, इकबाल भट, सलीम चिश्ती, सैयद जमीर हुसैन, नसीम उर्फ टार्जन और सुहैल गनी पर पॉक्सो कोर्ट में मुकदमा चल रहा है, लेकिन वे सभी जमानत पर बाहर हैं। एक और संदिग्ध, अलमास के बारे में माना जाता है कि वह अमेरिका में रह रहा है, उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट और रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया है। पहले आठ संदिग्धों को 1998 में जिला सत्र अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, लेकिन साल 2001 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने उनमें से चार को बरी कर दिया था और फिर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2003 में बाकी आरोपियों की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया। कुछ पुलिस अधिकारियों और विशेष अभियोजकों ने कई सालों में इस सारे मामले को कमजोर कर दिया.’
राजेश झा
वर्ष 1992 की 21 अप्रैल को संतोष कुमार गुप्ता ने इस यौन शोषण के बारे में ‘दैनिक नवज्योति’ के लिए अपनी पहली खबर लिखी। हालांकि, इस खबर ने तब तक कोई ज्यादा हलचल नहीं मचाई, जब तक कि इस अखबार ने इस बारे में अपनी दूसरी रिपोर्ट – इस बार पीड़िताओं की बिना कपड़ों वाली धुंधली की गईं तस्वीरों के साथ – प्रकाशित नहीं की। यह खबर 15 मई 1992 को सामने आई और इसने तुरंत ही हंगामा खड़ा कर दिया। इस मामले को लेकर जनता में फैले व्यापक आक्रोश के कारण 18 मई को पूरा अजमेर बंद रहा। 27 मई को, पुलिस ने कुछ आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत वारंट जारी किया, और तीन दिन बाद, तत्कालीन उत्तरी अजमेर के पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) हरि प्रसाद शर्मा ने गंज पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की।तत्कालीन-एसपी सीआईडी-क्राइम ब्रांच, एन.के. पाटनी को इस मामले की जांच के लिए जयपुर से अजमेर भेजा गया था।
पाटनी( जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं) ने कहा कि यह हाई-प्रोफाइल मामला ऐसे समय में आया था जब पूरे भारत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा था। लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा कुछ साल पहले ही हुई थी और यह मामला बाबरी मस्जिद के विध्वंस से कुछ महीने पहले आया था। पाटनी ने कहा, ‘यह तब एक बड़ी चिंता की बात थी कि कैसे इस मामले को सांप्रदायिक होने से रोका जाए क्योंकि मुख्य आरोपी मुस्लिम थे और अधिकांश पीड़िताएं हिंदू थीं।लैब तकनीशियन और कुछ अन्य आरोपी हिंदू थे।’ उन्होंने जांच के दौरान सात गवाहों के बयान दर्ज करने की बात याद की, जिसमें से एक वह चश्मदीद गवाह भी शामिल थी जो बाद में अदालत में गवाही देने गयी थी। पाटनी ने कहा, ‘मैं सादे कपड़ों में उसके घर गया था. मुझे उसे यकीन दिलाना पड़ा कि उसने कुछ भी गलत नहीं किया है , काफी काउंसलिंग (समझाने-बुझाने) के बाद उसने अपना बयान दर्ज कराया। ’
सितंबर 1992 में, पाटनी ने पहली चार्जशीट दायर की, जो 250 पृष्ठों में थी और जिसमें 128 प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के नाम और 63 सबूत थे। जिला सत्र अदालत ने 28 सितंबर को सुनवाई शुरू की थी.1992 के बाद से, अजमेर बलात्कार मामले ने कई अलग-अलग मुकदमों, अपीलों और कुछ लोगों के बरी होने के साथ एक जटिल और लम्बा कानूनी रास्ता तय किया है। कुल मिलाकर अठारह लोगों को आरोपी के रूप में नामित किया गया था, जिनमें से एक ने 1994 में आत्महत्या कर ली थी। मुकदमे चलाये जाने वाले पहले आठ संदिग्धों को 1998 में जिला सत्र अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, लेकिन साल 2001 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने उनमें से चार को बरी कर दिया और सुप्रीम कोर्ट ने साल 2003 में बाकी आरोपियों की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया।
बाकी संदिग्धों को अगले कुछ दशकों में गिरफ्तार किया गया और उनके मामलों को अलग-अलग समय पर मुकदमे के लिए भेजा गया। फारूक चिश्ती ने दावा किया कि वह मुकदमे का सामना करने के लिए मानसिक रूप से अक्षम है, लेकिन 2007 में, एक फास्ट-ट्रैक अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई।वर्ष 2013 में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने माना कि उसने पर्याप्त समय कैद में बिता दिया है और इस वजह से उसे रिहा कर दिया गया। नफीस चिश्ती, जो एक हिस्ट्री-शीटर (आपराधिक इतिहास वाला व्यक्ति) था और जो नशीली दवाओं की तस्करी के मामलों में भी वांछित था ,फरारी जीवन जी रहा था। उसे दिल्ली पुलिस ने जब पकड़ा वह बुरका पहनकर भाग रहा था। एक अन्य संदिग्ध इकबाल भट 2005 तक गिरफ्तारी से बचता रहा, जबकि सुहैल गनी चिश्ती ने 2018 में आत्मसमर्पण कर दिया।इस तरह के हर घटनाक्रम के बाद वैसी पीड़िताओं को जो अभी भी गवाही देने की इच्छुक या सक्षम थीं, वापस अदालत में घसीटा गया.
फिलहाल छह आरोपियों- नफीस चिश्ती, इकबाल भट, सलीम चिश्ती, सैयद जमीर हुसैन, नसीम उर्फ टार्जन और सुहैल गनी पर पॉक्सो कोर्ट में मुकदमा चल रहा है, लेकिन वे सभी जमानत पर बाहर हैं. एक और संदिग्ध, अलमास महाराज, कभी पकड़ा ही नहीं गया और उसके बारे में माना जाता है कि वह अमेरिका में रह रहा है. उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट और रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया है। पहली चार्जशीट दाखिल करने वाले एन.के. पाटनी ने कहा, ‘कुछ आरोपियों को उम्रकैद की सजा दी गई, लेकिन कुछ पुलिस अधिकारियों और विशेष अभियोजकों ने कई सालों में इस सारे मामले को कमजोर कर दिया.’