Islam

मक्केश्वर महादेव पर उत्कीर्ण है’ॐ’: कुमार गुंजन अग्रवाल

काबा के ईशान कोण में स्थापित शिवलिंग पर ‘ॐ’ की आकृति भी स्पष्ट रूप से उत्कीर्ण है। ‘अल्-हज़र-अल्-अस्वद’ (काला पत्थर) को इस्लाम में पवित्रतम वस्तु माना जाता है। यही कारण है कि इस्लाम में शिवलिंग को उतना बुरा या अस्पृश्य नहीं मानते जितना अन्य मूर्तियों को मानते हैं।’मक्का में 360 मन्दिर थे’ और बीचोंबीच महान् शिवालय था जिसके अधिपति श्रीमक्केश्वर महादेव थे यह बात इस्लामी ग्रंथ भी स्वीकार करते हैं।एक अवधारणा यह भी है कि काबा असुरों के गुरु शुक्राचार्य का ही मन्दिर है।

राजेश झा

विश्व के कोने-कोने में विद्यमान शिवलिंग इस बात के उदाहरण हैं कि भगवान शिव की उपासना न केवल भारतवर्ष में अपितु भारतेतर देशों में भी अति प्राचीन काल से प्रचलित रही है। इस्लाम में सर्वाधिक पूजनीय स्थल ‘काबा’ भी प्रागैस्लामी समय का शिवमन्दिर ही है जिसकी घनाकार इमारत के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में शिवलिंग ही स्थापित है जिसे अरबी में ‘अल्-हज़र-अल्-अस्वद’ और फ़ारसी में ‘संग-ए-अस्वद’ अथवा ‘काला पत्थर’ कहा जाता है।उल्लेखनीय है कि  ‘संग’ का अर्थ है पत्थर और ‘अस्वद’ का अर्थ है अश्वेत (काला)।संलग्न पहले चित्र को जूम करके देखें।यदि यह शिवलिंग नहीं है, तो इसपर ‘ॐ’ क्यों उत्कीर्ण है?
वैदिक परम्परानुसार शिव की स्थापना ईशान कोण में ही की जाती है। यदि मुसलमान अपने सबसे पूजनीय काले पत्थर का हिंदुत्व से कोई सम्बन्ध नहीं मानते हैं, तो इसे काबा के ईशान कोण में ही क्यों स्थापित किया गया? क्योंकि इस्लाम में तो प्रत्येक वैदिक मान्यता का विपरीत ही किया जाता है। उल्लेखनीय है कि काबा के ईशान कोण में स्थापित शिवलिंग पर ‘ॐ’ की आकृति भी स्पष्ट उत्कीर्ण है।‘अल्-हज़र-अल्-अस्वद’, ‘काबा’ नामक इमारत के अन्तर्गत है और काबा एक विशाल मस्जिद के अन्तर्गत जिसका आधिकारिक नाम ‘अल्-मस्जिद-अल्-हरम’ है। यह मस्जिद मक्का (महाकाय) नगर के बीचोंबीच स्थापित है।इस्लामी ग्रंथ भी यह स्वीकार करते हैं कि ‘मक्का में 360 मन्दिर थे’ और बीचोंबीच महान् शिवालय था जिसके अधिपति श्रीमक्केश्वर महादेव थे।काबा की पूर्वी बाहरी दीवार के कोने में सतह से 1.5 मीटर ऊपर 30 सेमी. (12 इंच) व्यासवाला लाल-काले रंग का यह अति प्राचीन और महान् शिवलिंग चिना हुआ है। अज्ञानतावश सोशल मीडिया पर काले पत्थर के नाम पर बहुत से भिन्न चित्र प्रदर्शित किए जाते हैं।


‘अल्-हज़र-अल्-अस्वद’ (काला पत्थर) को इस्लाम में पवित्रतम वस्तु माना जाता है। दुनियाभर के मुसलमान इसी पत्थर का दर्शन करने, जितनी बार हो सके, मक्का की यात्रा करते हैं। यही कारण है कि इस्लाम में शिवलिंग को उतना बुरा या अस्पृश्य नहीं मानते जितना अन्य मूर्तियों को मानते हैं क्योंकि शिवजी की पूजा तो असुरों द्वारा भी की जाती रही है । एक अवधारणा यह भी है कि काबा असुरों के गुरु शुक्राचार्य का ही मन्दिर है क्योंकि शुक्राचार्य को वैदिक संस्कृत में ‘काव्य’ कहा जाता है और काव्य का अपभ्रंश ‘काबा’ हुआ है। मैंने अनेक मुसलमानों से इस सम्बन्ध में बात की है। प्रायः मुसलमान शिवलिंग के विरुद्ध कोई नकारात्मक बात नहीं बोलते हैं (क्योंकि शिव तो उनके भी देवता हैं) बल्कि कई तो यहाँ तक कहते हैं कि मक्का में शिवलिंग ही है। परन्तु आश्चर्य है कि ज्ञानवापी में मुसलमानों ने महादेव की अवहेलना की।

इस्लामी परम्परानुसार यह पत्थर फ़रिश्ते ग़ैब्रियल द्वारा पैग़ंबर अब्राहम को दिया गया था। इस्लामी-मान्यता से यह पत्थर मूलतः सफे़द था, किन्तु सहस्राब्दियों से अशुद्ध लोगों अथवा पापियों द्वारा छूते रहने से अश्वेत हो गया था। आमतौर पर यह पत्थर ‘किस्वत’ (काली चादर) से ढका रहता है। हज के दौरान किस्वत को हटाकर इसे दिखाया जाता है। यह भी एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि इस शिवलिंग को खड़े अर्घे के आकार के चाँदी के एक बड़े भारी फ्रे़म में दिखाया जाता है। इस शिवलिंग को अनेक बार खण्डित किया गया, इसमें सन् 683 का विध्वंस प्रमुख है जिसमें इस शिवलिंग के अनेक टुकड़े हो गए और इसपर बहुत अफ़सोस जताते हुए अब्द अल्लाह इब्न अल-जुबैर द्वारा चांदी के अर्घा के आकार के फ्रेम का उपयोग करके टुकड़ों को फिर से जुड़वाया गया। हज-यात्री इसी अर्घा के बीचोबीच बने एक गोलाकार छिद्र में झाँककर महादेव का दर्शन करते हैं और इसे चूमते हैं।
(महामना मालवीय मिशन नई दिल्ली में शोधकर्ता कुमार गुंजन अग्रवाल संस्कृत साहित्य और अंग्रेजी के उद्भट्ट विद्वान हैं। वे ‘भारतीय धरोहर, सभ्यता संवाद, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना आदि के साथ काम कर चुके हैं।)                         

( क्रमशः )
 

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