आदिवासियों में मातृपक्ष सर्वोपरि
राजेश झा
डॉ पुरुषोत्तम लाल मीणा कहते हैं -” वनवासियों का मौलिक धर्म ‘प्रकृतिमय जीवन है।’ इस माने में हमारे कुछ वनवासी विद्वान, वनवासियों को ‘प्रकृति पूजक’ बोलते और लिखते हैं।मेरा मत है कि वनवासी जन्म से मृत्यु तक प्रकृति की गोद में रहता है। इस कारण वनवासी जीवंत प्रकृति को अपनी मां की भांति जानता, मानता और संभालता है।वनवासी भी प्रकृति की पूजा नहीं, सेवा करता है। जिसके लिये सेवा से अधिक उपयुक्त शब्द है-‘संरक्षण’। अत: मेरी समझ में वनवासी ‘प्रकृति पूजक’ नहीं, बल्कि ‘प्रकृति संरक्षक’ ‘प्रकृति रक्षक’ या है। अत: यदि वनवासी का कोई एक धर्म हो सकता है तो वह है-‘प्रकृति रक्षक’ ही है। फिर भी पृथक कॉलम/कोड में जनगणना करवाने के मकसद से हमारी राष्ट्रीय पहचान केवल और केवल ‘वनवासी’ के नाम से ही स्वीकार्य होनी और की जानी चाहिये।
हमारे ऋषि -मुनि सदियों से अपने गुरुकुल बिना किसी भेदभाव से वनप्रदेशों में चलाते रहे हैं जिसमें राजा और प्रजा दोनों की संतानें समान भाव से शिक्षित होती थीं। कर्मक्षेत्र में भी समाज में छुआछूत नहीं था। मर्यादापुरुष राम वनवासियों के बल पर लंका पर विजय प्राप्त कर सके थे और धोबी के कहने पर पत्नी को त्यागकर उन्होने ‘राजतंत्र में भी प्रजा के मतों को मान देने ‘ का उदाहरण प्रस्तुत किया था।लाक्षागृह से पांडवों के प्राण वनवासियों की कृपा से ही बचे थे। इतना ही नहीं हमारे प्रमुख धार्मिक ग्रंथों के रचयिता वेदव्यास , वाल्मीकि आदि समाज के कथित रूप से वंचित वर्ग के थे लेकिन उनके प्रति श्रद्धा सार्वभौमिक एवं सर्वकालिक हैं।
आदिवासियों में वंश परंपरा मातृसत्तात्मक होती है। रावण की माता कैकसी जिसे निकशा या केशनी के नाम से भी जाना जाता है, वह रावण के नाना सुमाली और मेरुमति की पुत्री थीं। यही वजह है कि मातृसत्तात्मक पद्धति होने से रावण को आदिवासी कुल का माना जाता है।
पृथक कॉलम/कोड में आदिवासियों की जनगणना की मांग के विमर्श के दौरान डूंगरपुर, राजस्थान के एक जिज्ञासु आदिवासी कमलेश गमेती पूछते हैं कि – हम हिन्दू नहीं है ,आदिवासी हैं तो हमारा धर्म क्या है और हम चाहते क्या है ? गैर आदिवासियों तथा आदिवासियत की समझ नहीं रखने वालों के लिये समझने वाली बात यह है कि आदिवासी अपनी मौलिक पहचान और संस्कृति को बचाये एवं बनाये रखने की जद्दोजहद करता रहा है।
सह सरकार्यवाह डॉक्टर कृष्णगोपाल ने आदिवासियों को हिंदू धर्म का हिस्सा बताया था.उन्होंने कहा था कि सरना कोई धर्म नहीं है. आदिवासी भी हिंदू धर्म कोड के अधीन हैं. इसलिए उनके लिए अलग से धर्म कोड की कोई ज़रूरत नहीं है।