विश्व संस्कृत दिवस
संस्कृत दिवस हर वर्ष श्रावणी पूर्णिमा को मनाया जाता है। जैसा कि हम जानते हैं श्रावणी पूर्णिमा का हमारी संस्कृति में बहुत महत्व है। हमारे देश में जन्में ऋषियों ने हमें विवेक और ज्ञान का उपहार दिया है। उनके योगदान पर प्रकाश डालने और उन्हें नमन करने के लिए श्रावणी पूर्णिमा को संस्कृत दिवस या ऋषि पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक संस्कृत भाषा को समर्पित किया गया है। संस्कृत भाषा अपने माहात्म्य के कारण देव भाषा भी कही गई है। भारतवर्ष की भूमि पर इसका सम्मान चिरकाल से होता आया है।
संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। इस भाषा को देववाणी के समान प्रतिष्ठित माना गया है। कर्णप्रिय ध्वनि तथा वैभवशाली शब्दों का समागम संस्कृत भाषा को भारत में ही नहीं, अपितु विश्व भर में इसे आदरणीय बनाता है। कुछ विदेशी भाषाविद भी मानते हैं कि संस्कृत भाषा ग्रीक, लैटिन जैसी भाषाओं से भी प्राचीन है। अतएव संस्कृति में संस्कृत के प्रबल प्रभाव को दर्शाने के लिए श्रावणी पूर्णिमा का दिन चुना गया है।
यह संस्कृत के अस्तित्व को जीवित रखने की ओर लिया गया एक सराहनीय प्रयास है। भारत में इसे पढ़े लिखने वालों की संख्या घटती जा रही है। संस्कृत दिवस जैसे उत्सव आम जनजीवन में संस्कृत के प्रति जागरूकता का संचार करेंगे। इससे हम ये भी समझ पाएंगे कि विदेशी भाषा के प्रभाव तले हमारी अपनी धरोहर खोनी नहीं चाहिए।
संस्कृत भाषा का संसार अत्यंत विस्तृत है। इससे जुड़े ग्रंथों का अध्ययन तत्कालिन परिवेश का ब्यौरा देता है। संस्कृत विश्व के प्रथम ग्रंथ ऋग वेद से लेकर अमूमन सभी प्राचीन ग्रंथों में विद्यमान है। कालचक्र के अधीन हो कर इसकी समकालीन भाषाओं का अस्तित्व मिट गया, किंतु संस्कृत आज भी एक प्रभावशाली भाषा के रूप में सुशोभित है।
संस्कृत वर्तमान में प्रयोग में लाई जाने वाली भाषाएं जैसे कि हिंदी, मराठी, तेलुगु, सिंधी, बंगला आदि की जननी भी है। हिंदू, बौद्ध, जैन इत्यादि धर्मों के अनेकों ग्रंथ संस्कृत भाषा में भी लिखे गए हैं।
संस्कृत भाषा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथ इस प्रकार हैं,
चारों वेद
व्याकरण निरुक्त
वेद वेदांग
उपनिषद
अठारह पुराण
प्राचीन भारतीय साहित्य संस्कृत की कर्मभूमि के समान है। गौर करें तो संस्कृत को भारतीय उपमहाद्वीप की शास्त्रीय भाषा होने का गौरव भी प्राप्त है। इस भाषा का प्रादुर्भव पांच हजार वर्षों से भी पहले हुआ था। इसे देववाणी अथवा सुरभारती जैसा संबोधन भी मिला।
वेदों के अलावा प्रमुख साहित्यों को देखा जाए तो पतंजलि, पाणिनी आदि की रचनाओं ने संस्कृत की स्थिति सुदृढ़ की है। पतंजलि रचित योगसूत्र में छह प्रकार के दर्शनों का वर्णन है, जो संस्कृत में रचित हैं। उसी प्रकार पाणिनी ने अष्टाध्यायी की रचना की जो लगभग चार हजार सूत्रों से बना है। इसे संस्कृत भाषा से जुड़ा व्याकरण का एक व्यापक विवरण माना गया है।
देवीमाहात्म्य ग्रंथ में सुरक्षित पांडुलिपि को संस्कृत भाषा से जुड़ी सबसे प्राचीन पांडुलिपि माना गया है। ऋग वैदिक काल से ले कर वर्तमान स्थिति की बात करें तो पूजा, धर्म से जुड़े कार्यों के अलावा दार्शनिक, वैज्ञानिक और मानविकी क्षेत्र में भी संस्कृत एक प्रभावशाली भाषा रही है।