‘वन्दे मातरम’ का गायन अनिवार्य घोषित हो
‘वंदे मातरम’ के गायन को अनिवार्य घोषित कर राष्ट्रगीत को राजनीतिक विवादों से निकालना होगा
मद्रास हाई कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया है कि राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम’ (vande mataram) सभी स्कूलों, कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थानों में सप्ताह में एक दिन गाना ही होगा। इसके साथ ही सभी सरकारी और निजी दफ़्तरों में महीने में एक दिन ‘वन्दे मातरम’ गाने का निर्देश मद्रास हाईकोर्ट ने दिया जिसपर समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने ‘वंदे मातरम ‘ का विरोध किया है। इससे पहले भी एक बार उन्होंने ‘वंदे मातरम’ के विरोध में संसद से वॉकआउट किया था। जिसके बाद उन्हें लोकसभा की तत्कालीन स्पीकर मीरा कुमार ने कड़ी नसीहत भी दी थी।ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन ( बी बी सी ) द्वारा विश्वभर के लोकप्रिय दस गीतों के लिए वर्ष २००३ में कराए गए सर्वेक्षण में भारतवर्ष के राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम’ को जग का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत चुना गया था। आज उसपर फिर विवाद खड़ा किया गया है।ऐसे समय में शास्त्रीय गायक विष्णु दिगंबर पलुस्कर की याद स्वाभाविक है जिन्होने 1923 के कांग्रेस अधिवेशन में मोहम्मद अली जौहर के विरोध को लताड़ते हुए कहा था “ये कांग्रेस अधिवेशन है ,कोई मस्जिद नहीं। वन्दे मातरम गाया ही जाएगा। “
उल्लेखनीय है ,’वंदे मातरम्’ को दिसम्बर 1905 में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया गया था, बंग-भंग आंदोलन के दौरान देश में ‘वंदे मातरम्’ इतना लोकप्रिय हो गया था कि वह राष्ट्रीय नारा बन गया था। 14 अगस्त 1947 की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारंभ राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ के साथ और समापन राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के साथ हुआ था।वर्ष 1950 में ‘वंदे मातरम’ राष्ट्रीय गीत और ‘जन गण मन’ राष्ट्रगान के रूप में मान्यता दी गयी थी। देश में 1906 से 1911 तक ‘वंदे मातरम्’ गीत पूरा गाया जाता था, उस समय इस मंत्र गीत को ऐसा लोकसमर्थन था कि जबरदस्त विद्रोह के भय के चलते बंगाल का विभाजन तक ब्रितानी हुकूमत को वापस लेना पडा था। इस गीत को गाते हुए भारत माता के अनेक लाड़ले जैसे मदनलाल ढींगरा, प्रफुल्ल चाकी, खुदीराम बोस, सूर्यसेन, रामप्रसाद बिस्मिल आदि ने फांसी के फंदे को चूम लिया था। भगत सिंह अपने पिता को पत्र लिखते हुए वंदे मातरम् से अभिवादन करते थे। सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज ने इस गीत को स्वीकार किया था और सिंगापुर रेडियो स्टेशन से इसका प्रसारण भी होता था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा में 24 जनवरी 1950 में ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने सम्बन्धी वक्तव्य पढ़ा जिसे सभी के द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद के संविधान सभा को दिया गया वक्तव्य इस प्रकार है, “शब्दों व संगीत की वह रचना जिसे जन गण मन से सम्बोधित किया जाता है, भारत का राष्ट्रगान है; बदलाव के ऐसे विषय, अवसर आने पर सरकार अधिकृत करे और वंदे मातरम् गान, जिसने कि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभायी है; उसको जन गण मन के समकक्ष सम्मान व पद मिले। (हर्षध्वनि)। मैं आशा करता हूँ कि यह सदस्यों को सन्तुष्ट करेगा। (भारतीय संविधान परिषद, द्वादश खण्ड, 24-1-1950)” यह सभी बाते दर्शाती है कि राष्ट्र के निर्माताओं के लिए ‘वंदे मातरम्’ कितना महत्वपूर्ण था और वो इस पर क्या विचार रखते थे जबकि यह ध्यान रहे कि यह वो दौर था जब भारत एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई के रूप में स्थापित नहीं हुआ था और इसके लिए संघर्ष ही चल रहा था। तब यह वंदे मातरम् सभी धर्म के लोगों को देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत कर देता था तो आज इसके गायन से किसी धर्म को परेहज कैसे हो सकता है।
इसको विवादों का मुख्य विन्दु बनाने के लिए संविधान विशेषज्ञ ए-जी- नूरानी ने फ्रंट लाइन पत्रिका के जनवरी 02-15, 1999 के अंक में वंदे मातरम् के गायन को अनिवार्य बनाए जाने के आदेश को असंवैधानिक कदम बताया और इसके लिए दो आधार बताए थे। उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद 28 (1) एवं 3 का उल्लंन बताया। ये अनुच्छेद इस प्रकार हैं- 1 राज्य कोष से संपूर्णत: संधारित होने वाली किसी भी शैक्षणिक संस्था में धार्मिक शिक्षा नह दी जाएगी तथा (2 ) राज्य के द्वारा मान्यता प्राप्त या राजकोष से सहायता प्राप्त किसी शिक्षण संस्था में उसकी या यदि वह नाबालिग है तो उसके अभिभावक द्वारा सहमति के बिना कोई धार्मिक शिक्षण नहीं होगा।
इस गीत को धार्मिक मानते हुए नीरद सी- चौधरी की ‘एक अज्ञात भारतीय की जीवनी तथा आर-सी- मजूमदार को बार -बार उद्धृत किया जाता है जिसमें इस गीत के रचयिता महान देश भक्त बंकिमचंद्र को मुस्लिम विरोधी बताया गया है।उन्होंने आनंदमठ में इस गीत के योग के एम-आर-ए- बेग द्वारा किया गया विश्लेषण अप्रैल-जून 1969, द इंडियन जर्नल ऑफ पॉलिटिकल साइंस, -2, पृ-120-122 को उद्धृत किया जिसके अनुसार उपन्यास में कि इस गीत का सन्दर्भ मुस्लिम विरोधी है बल्कि पूरा उपन्यास ही मुस्लिम विरोधी है।उन्होंने 30 दिसम्बर 1908 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग अधिवेशन के द्वितीय सत्र में सैयद अली इमाम के अध्यक्षीय उद्बोधन को उद्धृत किया जिसमें वंदे मातरम् को एक सांप्रदायिक आव्हान बताया गया था। इमाम के महान शब्द जो उन्होंने उद्धृत करने लायक समझे वे ये हैं- ‘क्या अकबर और औरंगजेब द्वारा किया गया योग असफल हो गया?
यह एक ऐसा कु -प्रश्न है जिसको अब कुचल ही दिया जाना चाहिए क्योंकि किसी राष्ट्र की पहचान से जुड़े प्रतीक, राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत उसके सभी देशवासियों के लिए सर्वोपरि होते हैं। उसका आदर सम्मान करने में कभी कोई धर्म नहीं रोकता, सभी धर्मों में देशभक्ति और संविधान का दर्जा सर्वोच्च होता है। इसलिए वंदे मातरम् व अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों पर बार-बार विवाद खड़ा करने वाले लोगों को कम- से- कम अब तो समझ लेना चाहिए कि राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत व राष्ट्र प्रतीक विवाद के लिए नहीं होते बल्कि गर्व करने के लिए होते है। उन पर विवाद खड़ा करके वे लोग अपने देश की एकता , अखंडता व शांति का अहित करते है।”