सरदार पटेल के अनुरोध पर गोलवलकर गुरूजी ने कश्मीर के महाराजा का हृदय -परिवर्तन कराया
जम्मूकश्मीर के भारत में विलय की कहानी
देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के अनुरोध पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरुजी ने अपने सभी कार्यक्रमों को रद्द करते हुए न केवल कश्मीर की यात्रा की बल्कि महाराजा हरि सिंह को भारत में कश्मीर के विलय के लिए सहमत कर लिया। जिस काम को भारत सरकार का तंत्र लगभग आठ महीने से नहीं कर पा रहा था उसे श्री गुरूजी ने ,महाराजा हरि सिंह से अपनी भेंट के आठ दिनों के भीतर, कर दिखाया। सरदार पटेल के अनुरोध पर १७ अक्टूबर को गुरूजी नागपुर से दिल्ली पहुंचे , १८ अक्टूबर को उन्होने कश्मीर में महाराजा हरि सिंह से विशद चर्चा की और ‘विलय हेतु सहमति’ की महाराजा हरि सिंह इच्छा से सरदार वल्लभ भाई पटेल को दिल्ली में १९ अक्टूबर को अवगत कराया जिसके बाद कश्मीर के भारत में विलय की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई एवं २६ अक्टूबर को कश्मीर का भारत में विलय हो गया।
जम्मू -कश्मीर प्रान्त के महाराजा हरि सिंह को वहां के संघ प्रचारक पंडित प्रेमनाथ डोगरा ने अनेक संगठनों से लिखित प्रतिवेदन दिलवाया था कि वे अपनी रियासत का विलय भारत में कर दें। दूसरी तरफ शेख अब्दुल्ला वहां की जनता को भड़काकर महाराजा के विरुद्ध आंदोलन चलवा रहे थे जिसके कारण पाकिस्तान द्वारा महाराजा पर दवाब बनाया जा रहा था।पाकिस्तान में विलय को लेकर महाराज भ्रमित थे क्योंकि कश्मीर रेलमार्ग – सड़कमार्ग और हवाई मार्ग से लाहौर तथा सियालकोट से जुड़ा था और भारत से उसका संपर्क न्यूनतम था। आवागमन की सुविधा को देखते हुए पाकिस्तान में विलय महत्वपूर्ण था किन्तु जिन्ना पर उनको भरोसा नहीं था , दूसरी तरफ भारत के प्रधानमंत्री नेहरू का उनसे व्यक्तिगत द्वेष था तो भारत से जुड़ना महाराजा हरि सिंह को उचित नहीं लग रहा था।
कश्मीर के भारत में विलय का विषय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने विशेषाधिकार में रखा था लेकिन जम्मू -कश्मीर की स्थिति दिनोंदिन पाकिस्तानी कबायलियों के कारण बिगड़ती जा रही थी। शेख अब्दुल्ला की टीम तीनों विकल्पों पर काम कर रही थी -(क) वह पाकिस्तान सरकार से भी बात कर रही थी ,(ख ) नेहरू से भी सौदेबाज़ी में लगी थी और (ग) इनके समानांतर वह ‘कश्मीर :अलग देश’ के रूप में बनाने के लिए माउंटबेटन को भी टटोल रही थी। दूसरी तरफ महाराज हरि सिंह पंडित नेहरू से अपने गंभीर मतभेदों के कारण भारत के साथ आने से हिचक रहे थे और पाकिस्तान में विलय को लेकर वे आश्वस्त नहीं थे क्योंकि जिन्ना के साथ उनको अपना भविष्य नहीं दिख रहा था। इस कारण वे ‘स्वीट्जरलैंड’ की तरह अलग देश के रूप में कश्मीर को बनाना चाहते थे। उनकी इस कोशिश को पलीता शेख अब्दुल्ला ने कथित ‘किसान आंदोलन’ द्वारा लगाना शुरू किया। उसकी आड़ में जिन्ना ने पाकिस्तान के सैनिकों को कबायली के रूप में वहां जाकर उत्पात करने की छूट दे दी।
सरदार पटेल को मालूम था कि कश्मीर यदि भारत का अंग नहीं बना तो राष्ट्रीय सुरक्षा पर सदैव संकट बना रहेगा। कश्मीर के भारत में विलय हेतु उन्होने महाराजा हरि सिंह के दीवान मेहरचंद महाजन से संपर्क किया तो उनको ज्ञात हुआ कि महाराजा हरि सिंह को मनाने की क्षमता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरु जी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति में नहीं है। तब गृहमंत्री सरदार पटेल ने श्री गुरूजी से अनुरोध किया कि राष्ट्रहित में उनको अपने प्रभाव का उपयोग करना चाहिए।श्री गुरूजी ने उनके अनुरोध को मान देते हुए अपने सभी पूर्वनिर्धारित कार्यक्रमों को निरस्त कर दिया और वे दिल्ली के प्रचारक वसंतराव ओक तथा बैरिस्टर नरेंद्रजीत सिंह के साथ कश्मीर गए। जब वे कर्णमहल पहुंचे तो महाराजा हरि सिंह ने सपत्नीक उनके चरणस्पर्श किये और उनका हार्दिक स्वागत किया। पंजाब प्रान्त के प्रचारक बद्रीदास भी प्रेमनाथ डोगरा के साथ उनकी सहायता के लिए वहां पहुंचे।
श्री गुरूजी की पहल पर महाराजा हरि सिंह ने विलय के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए गुरूजी को ससम्मान विदा किया। गुरूजी ने ‘विलय हेतु सहमति’ की सूचना सरदार वल्लभ भाई पटेल को दिल्ली में १९ अक्टूबर को दी एवं २६ अक्टूबर को कश्मीर का भारत में विलय हो गया। इसके बाद सरदार पटेल ने कश्मीर की रक्षा के लिए सैनिक भेजने में सबसे बड़े बाधक माउन्टवेटन को सैन्य कार्रवाई की अनुमति देने के लिए बाध्य कर दिया। जब भारतीय सैनिक वहां पहुंचे तो उनकी सहायता में जुट कर संघ के स्वयंसेवकों ने अतिक्रमणकारी पाकिस्तानी कबायलियों के दांत भी खट्टे किये। इससे पहले गुरु जी की प्रेरणा से कश्मीर के हज़ारों हिन्दुओं ने पूरे जम्मू कश्मीर प्रांत में छलपूर्वक लगाए गए’ पाकिस्तानी झंडों को उखाड़ वहां तिरंगा झंडे लहराकर भारत माता की जयकारों से सम्पूर्ण कश्मीर को अनुगुंजित कर दिया था।
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