दत्तोपंत ठेंगड़ी सच्चे अर्थ में दत्तात्रेय : बिंदू माधव जोशी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख स्तम्भ दत्तोपंत जी ठेंगड़ी के जीवन और कार्यों की चर्चा करते हुए अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के अध्यक्ष विन्दु माधाव जोशी ने 13 नवम्बर, 1986 को नागपुर में अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के अधिवेशन में अपने उद्बोधन में कहा कि ‘श्री दत्तोपंत ठेंगडी सच्चे अर्थ में दत्तात्रेय है। मजदूर संघ, किसान संघ तथा ग्राहक पंचायत यही वह ‘त्रिमूर्ति ‘ है।उन्होने स्वयं कुछ संगठन तो बनाये ही वे अनेक संगठनों के संस्थापक, मार्गदर्शक एवं संरक्षक के नाते भी कार्य करते रहे हैं । उनके गुणों का चर्चा करते हुए बिंदुमाधव जी ने कहा -” संघ प्रेरणा से स्थापित हुई संस्थाओं का विकास कैसा होगा, इस ओर उनका नित्य ध्यान रहता है। सहकार भारती, ग्राहक पंचायत, सामाजिक समरसता मंच, आदि संस्थाओं के नित्य प्रवास, परिवार के एक मुखिया के नाते जिम्मेदारी निभाने की भूमिका से इन संस्थाओं के कार्य की और ठेंगडी जी के देखने की भूमिका है।दत्तोपंत ठेंगडी जी द्वारा अनेक सगठनों का निर्माण किया गया। किन्तु वे किसी भी संगठन के पदाधिकारी नहीं है। एक बार श्री गुरूजी ने कहा था कि, ‘‘हम संगठनशास्त्र के विशेषज्ञ है’’। श्री दत्तोपंत जी ने इस उक्ती को शतप्रतिशत व्यवहार में प्रस्थापित किया। उनकी कार्य करने की विशिष्ठ पद्धति है। कार्यारंभ होने तक उसका प्रचार नहीं करना, तथा कार्य विस्तार होने के पश्चात प्रचार की चिंता करने की जरूरत नहीं (क्योंकि वह अपने आप होता है) यह उनकी कार्यशैली है।”
श्री दत्तोपंत जी ठेंगडी के जीवन कार्य के आलेख पर यदि हम नजर डाले तो ध्यान में आयेगा कि , उनका विभिन्न संगठनों में भिन्न- भिन्न विचारों के लोगों के साथ संपर्क आया। उनमें से कुछ व्यक्तियों का उल्लेख करना अनिवार्य है। सिविल लिबर्टी युनियन (Civil Liberty Union) में उन्होंने ‘हितवाद’ के तत्कालीन संपादक एस.के. भारद्वाज की अध्यक्षता में काम किया।वर्ष 1951 से 1953 तक वे एम.पी.टेनेन्टस एसोशिएशन (M.P. Tenants Association) के संगठन मंत्री रहे जिसके अध्यक्ष श्री एल.एम. माहुरकर थे। हेण्डलूम वीवर्स कांग्रेस (Handloom Weavers Congress) में वे कानूनी सलाहकार थे जिसके अध्यक्ष श्री कोंडा लक्ष्मण बापूजी एवं महासचिव श्री रा.बा.कुंभारे थे। विमुक्त जाति संघ के उपाध्यक्ष के रूप में दत्तोपंत ठेंगडी जी ने श्रीमति एम. चन्द्रशेखर के साथ काम किया जो उस संघ की अध्यक्ष और कांग्रेस पार्टी की नेत्री थी। ‘‘शेडयुल क्लाश रिक्सा पुलर्स कॉ–ऑपरेटिव सोसायटी’’ दिल्ली के उपाध्यक्ष माननीय दत्तोपंत जी थे जबकि उसके अध्यक्ष रिपब्लिकन पार्टी के ज्येष्ठ नेता श्री दादा साहब गायकवाड थे। छत्तीसगढ विलिनीकृत रियासत जनता कांग्रेस के वे सदस्य थे एवं अध्यक्ष उस इलाके के प्रसिद्ध नेता ठाकुर प्यारेलाल सिंह थे। ‘‘शेतमजूर कांग्रेस’’ के वे कार्यकारिणी सदस्य थे जबकि अध्यक्ष राजाराम महल्ले थे।पांडिचेरी आश्रम की ‘‘फ्रेेंच मॉं’’ की शताब्दी कार्यक्रम समिति बनाई गयी। उसके अध्यक्ष इस नाते उस समय के उपराष्ट्रपति श्री. बी. डी. जत्ती को मनोनित किया गया। उस समिति के उपाध्यक्ष पद पर तत्कालिक गृहमंत्री श्री यशवंतराव चव्हाण एवं श्री दत्तोपंत ठेंगडी नियुक्त हुए थे ।
उपरोक्त सभी संगठनों का उल्लेख केवल उदाहरण के रूप में किया गया है। संघ परिवार के बाहर अन्य नेताओं के साथ काम करते समय उनका विश्वास संपादित करने का जो काम दत्तोपंत ने किया यह उनकी विशेषता है। इन सब नेताओं के साथ ठेंगडी जी के पारिवारिक एवं आत्मीय संबंध रहे है। वैचारिक मतभेद इन व्यक्तिगत संबंधों में कभी बाधा नहीं बन पाये।
डॉ. बाबा साहब आंबेडकर से दत्तोपंत ठेंगडी के घनिष्ठ संबंध थे। डॉ. अंबेडकर को यह जानकारी थी कि दत्तोपंत ठेंगडी जी संघ के प्रचारक है। विभिन्न विषयों पर उनकी चर्चाएं होती थी। 14 अक्टुबर, 1956 को डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की। यह निर्णय मैंनें क्यों लिया? यह बताने के लिये डॉ. अंबेडकर ने कुछ पत्रकार एवं मित्रों को आंमत्रित किया था। उस समय दत्तोपंत जी ‘‘कार्यकर्ता’’ इस नाते वहां उपस्थित थे। दत्तोपंत जी बौद्ध महासंघ के सदस्य बने। उस समय श्री वामनराव गोडबोले (डॉ. अंबेडकर के सहयोगी) के साथ बने आत्मीय संबंध आज भी विद्यमान है। वही आत्मीय संबंध आगे रिपब्लीकन पार्टी के नेताओं के साथ भी निर्माण हुए। उदाहरण श्री दादासाहब गायकवाड, श्री दादासाहब कुंभारे, बाबू हरिदास आवले, बै. राजाभाऊ खोबरगडे, श्री रा.स. गवाई आदि है। आगे चलकर रिपब्लिकन पार्टी का विघटन हुआ। अनेक गुटों में यह पार्टी विभाजित हुई, किन्तु दत्तोपंत जी का संबंध सभी के साथ पुर्वानुरूप ही रहा।
1980 में मा. दत्तोपंत ठेंगडी जी की षष्टिपुर्ती भारत भर में संपन्न हुई। विभिन्न संगठनों के, विभिन्न दलों के, विभिन्न विचारों के प्रमुख, उस समय अलग अलग स्थानों पर सम्पन्न सत्कार समारोहों के अध्यक्ष के रूप उपस्थित रहे। नागपुर के सार्वजनिक कार्यक्रम के अध्यक्ष थे श्री रा.सु. गवई एवं चन्द्रपुर के कार्यक्रम के अध्यक्ष थे बै. राजाभाऊ खोबरगडे। किन्तु दोनों के द्वारा अपने भाषण में दत्तोपंत जी के प्रति व्यक्त की हुई आत्मीयता अनन्य साधारण थी। गत 10-15 वर्षों से भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आगमन प्रभावी ढंग से महसूस होने लगा है। आर्थिक आजादी को समाप्त करने वाला डंकल प्रस्ताव भारत ने स्वीकार किया। आर्थिक साम्राज्यवाद के विरोध में संघर्ष करने का समय भारतीय जनता के समक्ष आ गया है। आर्थिक रूप से आजाद रहना है तो ‘‘स्वदेशी’’ यही उसका पर्याय है यह अनुभूति प्रबुद्ध नागरिकों को होने लगी। इसमें संघ परिवार के नेताओं का बहुत योगदान है।
आर्थिक आजादी की जंग लङने के लिये उसकी उद्देश्य पूर्ति हेतु जन सामान्य में जागृति लाने के लिये दिनांक 22 नवम्बर, 1991 को नागपुर के रेशिमबाग स्थित डॉ. हेडगेवार एवं श्री गुरूजी के समाधि स्थल के समक्ष श्री दत्तोपंत ठेंगडी जी ने संघ परिवार के राष्ट्रीय स्तर के गिने चुने कार्यकर्ताओं के समक्ष ‘‘स्वदेशी जागरण मंच’’ की स्थापना की । संघ के सरकार्यवाह श्री शेषाद्री जी इस अवसर प्रमुख रूपसे उपस्थित थे। नागपुर विद्यापीठ के भूतपूर्व कुलगुरू डॉ. मा. गो. बोकरे इस संगठन के राष्ट्रीय संयोजक बने।स्वदेशी जागरण मंच द्वारा गतवर्ष देश में जो स्वदेशी अभियान चलाया गया एवं उसे जनता की ओर से जो अच्छा प्रतिसाद प्राप्त हुआ, विविध विचारों के राष्ट्रीय नेताओं ने उसमें जो सहभाग दिया, उस आधार पर इस अभियान की सफलता को माप सकते है। स्वदेशी जागरण मंच के प्रमुख मार्गदर्शक वे आजन्म रहे ।
श्री दत्तोपंत जी ठेंगडी 1964 से 1976 तक राज्यसभा के सदस्य थे। 1968 से 1970 तक वे राज्यसभा उपाध्यक्ष मंडल के सदस्य थे। अभी तक लगभग 30 से अधिक देशों का उन्होंने प्रवास किया है। 1993 में ‘‘वर्ल्ड व्हिजन 2000’’ में वाशिंगटन में किये भाषण ने पूरे कार्यक्रम पर एक अमिट छाप छोड़ी । 4-5 जुलाई, 1995 को दक्षिण अफ्रीका स्थित डरबन शहर में आयोजित ‘‘विश्व हिंदु सम्मेलन’’ में दत्तोपंत जी का प्रमुख भाषण हुआ। दक्षिण अफ्रीका के दूरदर्शन ने दत्तोपंत जी का साक्षात्कार प्रसारित किया।
दत्तोपंत जी कीमान्यता यह थी कि, विश्व में विविध प्रकार के जीवन मूल्य है। राष्ट्रजीवन पर विधायक परिणाम एवं प्रभाव डालने का काम चतुराई से नहीं किया जा सकता है। केवल पद प्राप्त कर या स्थान की महत्ता के चलते मिलने वाला बडप्प्पन वास्तविक रूप में बडप्पन नहीं होता है। किसी व्यक्ति का बडप्पन, किसी पद या स्थान पर निर्भर नहीं रहता, तो उसका आधार उस व्यक्ति की आंतरिक योग्यता, कार्य, विचार, एवं व्यवहार ही मानदंड होता है।ऐसे व्यक्ति में विनम्रता, श्रेय लेने से दूर रहने की प्रवृत्ति, खुद का नामोल्लेख न करने की वृत्ति दिखाई देती है। उसको अंग्रेजी में ‘‘सेल्फ निगेशन’’ कहते है। दत्तोपंत जी आपातकाल में निर्मित लोक संघर्ष समिति के अंतिम महासचिव थे। उस समय हुए संघर्ष की जानकारी आने वाली पीढ़ियों को हो, ऐसा विचार सामने रखकर ‘‘आपातकालीन संघर्ष की गाथा’’ नामक पुस्तक लिखी गई। इन संघर्ष में किन – किन व्यक्तियों ने किस प्रकार योगदान दिया इस संबंध में स्मरणपूर्वक नामोल्लेख किये है। केवल दत्तोपंत ठेंगडी का नामोल्लेख पूरे पुस्तक में होने नहीं दिया ।श्री दत्तोपंत ठेगडी जी का योगदान बहुत बडा है। उन्होंने सैकडों पुस्तकें लिखी है। वह ‘‘मौलिक विचारधन है’’ ।
14 अक्टुबर, 1995 को ‘‘अन्नत गोपाल शेवडे’’ पुरस्कार समारोह में उपराष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन ने ठेगडी जी के संबंध में कहा, ‘‘दत्तोपंत के जीवन पटल पर नजर डालने से वे कौनसे प्रांत के है, यह समझना कठिन है। वे केरल के है, या बंगाल के, या पंजाब के? वे भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि है, ऐसा मुझे लगता है।’’ उपराष्ट्रपति द्वारा व्यक्त इन भावनाओं को वसंतराव देशपांडे सभागृह में उपस्थित श्रोतृवृंद ने तालियों की गड़गड़ाहट कर प्रतिसाद दिया, उसी मेें सबकुछ समा गया।
{ आज दत्तोपंत जी की १९वीं पुण्यतिथि परअखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिंदुमाधव जोशी द्वारा पूज्य दत्तोपंत जी ठेंगड़ी पर दिए वक्तव्य एवं विमर्श के सम्पादित अंश पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं – सम्पादक )