हेमंत ऋतु में आहार-विहार कैसा होना चाहिए ?
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हेमंत ऋतु जो कि हम लोगो के लिए सामान्य भाषा में शीत काल बोल सकते है।शरीर पर शीत ऋतु का प्रभाव पड़ने से शिराओ के मुख भागों में संकोचन क्रिया हो जाती है,जिससे शारिरिक उष्मा बाहर नही निकल पाती।यदि इस ऋतु में यह क्रिया न हो तो शीत के कारण मानव की मृत्यु हो सकती है।इस ऋतु में जठराग्नि बलवान रहती है,जब आहार रूपी ईंधन को प्राप्त नही करती तब क्षुधित अग्नि शरीर के धातु का विनाश करती है तदनन्तर वायु का प्रकोप होता है।इसलिए हेमंत ऋतु में स्निग्ध (घी,तैल,वसा) अम्ल तथा लवण रस से युक्त भोज्य पदार्थों का,मछली,अधिक चर्बी वाले पशु,पक्षीयों के मासों का सेवन करना चाहिए।
दूध तथा उससे बने पदार्थ,चीनी,गुड़,खांड,नए चावलो का भात एवं गरम जल का सेवन करने वाले पुरूष की आयु क्षीण नहीं होती।इस ऋतु में तेल मालिश,स्निग्ध उबटन,धूप का सेवन करना चाहिए।शयन कक्ष एवं बैठने का स्थान चारो और से घिरा होना चाहिए।गरम वस्त्रों का धारण करना चाहिये।
इस ऋतु में लघु तथा वातवर्धक अन्न-पान,हवा में बैठना,थोड़ा भोजन करना,ठंडा जल,चीनी मिल ठंडा सत्तू का सेवन वर्जित है।
संदर्भ-चरक संहिता
वैद्य:- कांचन अमित सूर्यवंशी