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१९ जानेवारी १९९०:- ”हिन्दुओं कश्मीर खाली करो”

ना भूलेंगे ना छोड़ेंगे

कश्मीरी (kashmir)हिन्दुओं पर अत्याचारों की पराकष्ठा हो चुकी थी, परोक्ष रूप से असफल रहने के बाद कश्मीरी हिन्दुओं को घर से भगाने की जिम्मेदारी हिज्बुल मुजाहिद्दीन ने ली. 4 जनवरी सन् 1990 ई. को स्थानीय उर्दू अखबार में हिज्बुल मुजाहिद्दीन ने बड़े बड़े अक्षरों में प्रेस विज्ञप्ति दी कि –

“या तो इस्लाम क़ुबूल करो या फिर घर छोड़कर चले जाओ.”

इसके बाद कट्टरपंथियों(islamists) का अत्याचार हिन्दुओं (hindu )पर कहर बनकर टूट पड़ा, जिन मुसलमान लड़कों को कश्मीरी हिन्दुओं की लड़कियाँ अपना भाई मानकर राखी बांधती थी, वही उनके घर के सामने खड़े होकर उन्हें गालियाँ देने लगे और बलात्कार करने की धमकी देने लगे. 5 जनवरी, 1990 की सुबह गिरजा पण्डित और उनके परिवार के लिए एक काली सुबह बनकर आई.

गिरजा की 60 वर्षीय माँ का शव जंगल में मिला, उनके साथ बलात्कार किया गया था. उनकी आंखों को फोड़ दिया गया था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके साथ गैंगरेप के बाद हत्या की बात सामने आई. अगली सुबह गिरजा की बेटी गायब हो गयी, जिसका आजतक कुछ पता नहीं चला.

7 जनवरी, 1990 को गिरजा पण्डित( kashmiri hindu )ने सपरिवार घर छोड़ दिया और कहीं चले गए, ये था घाटी से किसी पण्डित का पहला पलायन, घाटी में पाकिस्तान के पाँव जमना, घाटी में हिज्बुल मुजाहिद्दीन का राज और भारत सरकार(bharat sarkar ) की असफलता और जिन्ना प्रेम ने कश्मीर को एक ऐसे गृहयुद्ध में धकेल दिया था, जिसका अंजाम बर्बादी और केवल बर्बादी थी.

19 जनवरी, 1990 को सभी कश्मीरी हिन्दुओं( kashmiri hindu)के घर के सामने नोट लिखकर चिपका दिया गया –

“कश्मीर छोड़ो या अंजाम भुगतो या इस्लाम अपनाओ.”

इन सब बढ़ते हुए विवादों के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री फ़ारुख अब्दुल्ला ने इस्तीफा दे दिया और प्रदेश में राज्यपाल शासन लग गया. तत्कालीन राज्यपाल गिरीश चन्द्र सक्सेना ने केंद्र सरकार से सेना भेजने की संस्तुति भेजी. लेकिन तब तक लाखों कश्मीरी मुसलमान सड़कों पर आ गये, बेनजीर भुट्टो ने पाकिस्तान से रेडियो के माध्यम से भड़काना शुरू कर दिया, स्थानीय नागरिकों को पाकिस्तान की घड़ी से समय मिलाने को कहा गया, सभी महिलाओं और पुरुषों को शरियत के हिसाब से पहनावा और रहना अनिवार्य कर दिया गया. बलात्कार और लूटपाट के कारण जन्नत-ए-हिन्द, जहन्नुम-ए-हिन्द बनता जा रहा था. सैकड़ों कश्मीरी हिन्दुओं की बहन बेटियों के साथ सरेआम बलात्कार किया गया, फिर उनके नग्न बदन को पेड़ों से लटका दिया गया.

23 जनवरी, 1990 को 235 से भी ज्यादा कश्मीरी पण्डितों की अधजली हुई लाशें घाटी की सड़कों पर मिली, छोटे छोटे बच्चों के शव कश्मीर के सड़कों मिलने शुरू हो गये, बच्चों के गले तार से घोंटे गये और कुल्हाड़ी से काट दिया गया. महिलाओं को बंधक बना कर उनके परिवार के सामने ही सामूहिक बलात्कार किया गया, आँखों में रॉड घुसेड़ दिया गया, हाथ पैर काट कर उनके टुकड़े कर कर फेंके गये, मन्दिरों को पुजारियों की हत्या करके उनके खून से रंग दिया. इष्ट देवताओं और भगवान के मूर्तियों को तोड़ दिया गया.

24 जनवरी, 1990 को तत्कालीन राज्यपाल ने बिगड़ते हालात देखकर फिर से केंद्र सरकार को रिमाइंडर भेजा, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री कार्यालय से कोई जवाब नहीं आया. उसके बाद राज्यपाल ने विपक्ष के नेता राजीव गाँधी को एक पत्र लिखा, जिसमें कश्मीर की बढ़ती समस्याओं का जिक्र था, उस पत्र के जवाब में भी कुछ नहीं आया.

जब 26 जनवरी, 1990 को भारत अपना 38वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा था, उस समय कश्मीर के मूलनिवासी कश्मीरी पण्डित (pandit) अपने खून एवं मेहनत से सींचा हुआ कश्मीर छोड़ने को विवश हो गये थे. वो कश्मीर जहाँ की मिट्टी में पले बढ़े थे, उस मिट्टी में दफन होने का ख्वाब उनकी आँखों से टूटता जा रहा था. 26 जनवरी की रात कम से कम 3,50,000 कश्मीरी पण्डित पलायन करने को विवश हो गये (ये सिर्फ एक रात का पलायन है). इससे पहले 9 जनवरी, 16 जनवरी, 19 जनवरी को हज़ारों लोग अपना घर बार धंधा पानी छोड़कर कश्मीर छोड़कर जा चुके थे. 29 जनवरी तक घाटी एकदम से कश्मीरी पण्डितों से विहीन हो चुकी थी, लेकिन लाशों के मिलने का सिलसिला रुक नहीं रहा था. 2 फरवरी, 1990 को राज्यपाल ने साफ साफ शब्दों में लिखा –

“अगर केंद्र ने अब कोई कदम ना उठाये तो हम कश्मीर गंवा देंगे.”

इस पत्र को सारे राज्यों के मुख्यमंत्री, भारत के प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता राजीव गांधी के साथ साथ बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को भी भेजा गया, पत्र मिलते ही बीजेपी का खेमा चौकन्ना हो गया और हज़ारों कार्यकर्ता प्रधानमंत्री कार्यालय पहुँच कर आमरण अनशन पर बैठ गए, राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री से निवेदन किया कि जल्द से जल्द इस मुद्दे पर कोई कार्यवाही की जाए.

6 फरवरी, 1990 को केंद्रीय सुरक्षा बल के दो दस्ते अशांत घाटी में जा पहुँचे. लेकिन उपद्रवियों ने उन पर पत्थर और हथियारों से हमला कर दिया. सीआरपीएफ ने कश्मीर के पूरे हालात की समीक्षा करते हुए एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेज दी. तत्कालीन प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री चन्द्रशेखर ने रिपोर्ट पर गौर करते हुए राष्ट्रपति को भेजते हुए अफ्स्पा लगाने का निवेदन किया. तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन ने अफ्सपा लगाने का निर्देश दिया.

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