वीर बलिदानी खाज्या नायक
सन 1857 की क्रांति के एक महायोद्धा थे बलिदानी खाज्या नायक, जिन्होंने ब्रिटिश आर्मी में होते हुए अंग्रेजों से बगावत कर देश के लिए बलिदान देकर अमरता प्राप्त की।
खाज्या नायक( khaja naik) अंग्रेजों की भील पल्टन में एक सामान्य सिपाही अंग्रेजो की रीति-नीति और षडयंत्रो के कारण अंग्रेजो से नफरत करने लगे। एक न्यायोचित कार्य करने पर भी शासन ने कानून अपने हाथ में लेने पर उन्हें दस साल की सजा सुनायी जेल से छूट कर उनके मन में इस विदेशी सत्ता से लड़ने की छटपटाहट और बढ़ गई।
उनके मन में प्रतिशोध की भावना इतनी प्रबल थी कि वह बड़वानी (मध्य प्रदेश) क्षेत्र के क्रान्तिकारी नेता भीमा नायक से मिले, जो रिश्ते में उनके बहनोई लगते थे। यहीं से इन दोनों की जोड़ी बनी, जिसने भीलों की सेना बनाकर निमाड़ क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध वातावरण खड़ा कर दिया।
भील शिक्षा और आर्थिक रूप से तो बहुत पीछे थे,परन्तु उनमें वीरता और महाराणा प्रताप (maharana pratap) के सैनिक होने का स्वाभिमान कूट-कूटकर भरा था। एक बार यह अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े हो गये, तो फिर पीछे हटने का कोई प्रश्न ही नहीं था। इस सेना ने अंग्रेजों के खजाने लूटे, अंग्रेजी अधिकारियों के साथ उनके सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
गिरफ्तार करने के अनेक प्रयास किये परंतु जंगल व घाटियों के गहरे जानकार होने के कारण यह वीर योद्धा मारकाट कर सदा बचकर निकल जाते थे। अब शासन ने भेद नीति का सहारा लेकर इन दोनों देशभक्त भील नायकों को पकड़वाने वाले को 1 हजार रूपये का पुरस्कार घोषित कर दिया. परंतु भीमा और खाज्या नायक बिना किसी भय के क्षेत्र में घूम-घूमकर लोगों को संगठित करते रहे।
11 अप्रैल,1858 को बड़वानी और सिलावद के बीच स्थित आमल्यापानी गाँव में अंग्रेज सेना और इस भील सेना की मुठभेड़ हो गयी। अंग्रेज सेना के पास आधुनिक शस्त्र थे, जबकि भील अपने परम्परागत शस्त्रों से ही मुकाबला कर रहे थे। सुबह से शाम तक यह युद्ध चला। इसमें खाज्या नायक स्वयं उनके वीर पुत्र दौलतसिंह सहित अनेक योद्धा बलिदान होकर राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए प्राणाहुति दे दी।