राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (rashtriya swayamsevak sangh) 24 अक्टूबर, 2023 को विजयादशमी के दिन 98 वर्ष पूर्ण कर शताब्दी वर्ष की ओर मार्गक्रमण करेगा।
अंतरजातीय विवाह का पुरस्कार रा. स्व. संघ (rss) ने किया, समरसता की भूमिका ‘रिडल्स’ अथवा नाम परिवर्तन जैसे प्रश्नों पर ली, इसके पीछे उस – उस समय के सरसंघचालकों का समर्थन था। इसी मजबूत बुनियाद पर संघ आज 99वें साल में पदार्पण कर रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 24 अक्टूबर, 2023, विजयादशमी के दिन 98 वर्ष पूर्ण कर शताब्दी वर्ष की दिशा मे मार्गक्रमण करेगा। संगठन का इतने लंबे समय तक टिके रहना, आगे बढ़ते रहना यह उस संगठन के कार्यकर्ताओं का, नेतृत्व करने वालों का और शुभचिंतकों की दृष्टि से आनंद और गर्व की बात है। साथ ही यह आत्मनिरीक्षण एवं आत्ममूल्यांकन का भी विषय होता है। संगठन के विकास के साथ-साथ समाज की दृष्टि से समय-समय पर समकालीन, ज्वलंत विषयों पर इसकी क्या भूमिका रही और समाज के निर्माण मे संगठन का क्या योगदान था , इस पर भी इस निमित्त विचार करना आवश्यक रहता है।
भारत में कम से कम 200 वर्षों से हिंदू समाज में जातिगत भेदभाव और छुआछूत के विषय को लेकर निरंतर मंथन चल रहा है। इस प्रश्न के स्वरूप, उत्पत्ति एवं समाधान पर विभिन्न वैचारिक एवं कृतिशील प्रवाह विद्यमान हैं। इस विषय पर संघ की भूमिका क्या रही इस अवसर पर यह विचार करना उपयोगी होगा। इस समस्या के कारण समाज के पतन का कारण बाहरी आक्रमण की अपेक्षा आंतरिक शिथिलता यह कारण है, ऐसा संघ संस्थापक डॉ.हेडगेवारजी का विचार था। “अपनी हीनता के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं। निरंतर सिंहावलोकन करते रहेंगे तो दोष दिखेगा। अगर हम स्वयं को निर्दोष समझेंगे,तो सुधार असंभव है,” ऐसे उन्होंने कहा। उन्होंने बार-बार कहा कि, “स्नानसंध्या जैसा व्यक्तिगत आचरण करना केवल धर्म नहीं है”। उन्होंने संघ की कार्यप्रणाली में जातिगत भेदभाव के लिए थोड़ी भी जगह नहीं छोड़ी थी। 1927 में अपने भाषण में, ‘संघशास्त्र अस्पृश्यता में विश्वास नहीं करता है। संघ गरीब-अमीर, ब्राह्मण-महार, विद्वान-अविद्वान के भेद को स्वीकार नहीं करता। संघ मे सभी को प्रवेश है उन्होंने यह विचार बहुत स्पष्टता रखा। उन्होंने ऐसा केवल कह कर रुके नहीं, अपितु प्रत्यक्ष करके भी दिखाया। संघ के प्रत्यक्ष कार्य मे बड़ी संख्या मे वंचित समाज के युवाओं का सहभाग है इस बात का प्रमाण स्वयं गांधीजी तथा डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर ने भी लिया हैं।
द्वितीय सरसंघचालक गोलवलकर गुरुजी और उनके बाद के सभी सरसंघचालकों ने संघ विचार की एक ही दिशा बनाए रखी। गुरुजी ने मद्रास गये बाबूराव तेलंग को एक पत्र भेजा था। उस पत्र में वे कहते हैं, ‘ब्राह्मण-अब्राह्मण, स्पृश्य-अछूत को नष्ट कर समाज को एकसंघ करना चाहिए।’
श्री गुरुजी ने 1966 में प्रयाग और बाद में उडुपी में धर्मसम्मेलन में ‘ना हिंदू पतितो भवेत’ (कोई भी हिंदू पतित नहीं है) और ‘हिंदूव: सोदर: सर्वे’ (सभी हिंदू भाई हैं) के संकल्प को सहमत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इतिहास के पुराने घावों पर मरहम लगाने के महत्व को जानते हुए उन्होंने उडुपी सम्मेलन के बाद कहा था, ”इतिहास में जो गलतियाँ हुई हैं, उन्हें सच्चे मन से सुधारना होगा और परिवर्तन लाने के लिए ” शहर – शहर, गांवों – गांवों और घरों – घरों में प्रत्येक व्यक्ति से संवाद करना होगा जो गलत है उसपर प्रबोधन कर जागरूक करना होगा, हृदय परिवर्तन करना होगा। हमें व्यवहार और वाणी में नैतिक और भावनात्मक स्तर पर बदलाव करना होगा और स्वीकार करना होगा। अंतरजातीय विवाहों का उनके द्वारा किया स्वागत और ऐसे विवाहों में उनकी प्रत्यक्ष उपस्थिति इस संबंध में संघ की भूमिका स्पष्ट करने वाली है।
गुरूजी के बाद संघ की जवाबदारी बालासाहब देवरस जी ने संभाला। सभी तत्कालीन विषयों पर उन्होंने संघ की भूमिका बहुत स्पष्ट शब्दों में प्रस्तुत की। वर्ण, जाति, अस्पृश्यता, आरक्षण, अंतरजातीय विवाह समाज के गठन और एकता को प्रभावित करने वाले मुद्दे थे। इस बारे में उनके विचार बहुत ही मौलिक और स्पष्ट थे। लगभग पचास साल पहले 8 मई, 1974 को पुणे में वसंत व्याख्यानमाला में एक भाषण में उन्होंने कहा था, “अस्पृश्यता एक गलती है।
It must go lock, stock and barrel..’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘If untouchability is not wrong, nothing in the world is wrong..’’ उसी भाषण में उन्होंने दलितों को दी जानेवाली रियायतों का भी बहुत आग्रहपूर्वक और स्पष्ट शब्दों मे समर्थन किया। उन्होंने यह भी कहा था कि दलित भाइयों को इन रियायतों की मांग करने का पूर्ण अधिकार है और यह सुविधाएं आगे कितने समय तक जारी रखना चाहिए यह भी उनका ही प्राशन है ऐसा उन्होंने कहा था। इस भाषण में उन्होंने अंतरजातीय विवाह की मजबूती से वकालत करते हुए कहा था, ”जिस प्रकार रोटी व्यवहार सर्वत्र प्रारंभ हुआ है, उसी प्रकार बेटी व्यवहार भी बड़े पैमाने पर प्रारंभ होना चाहिए.” इसमें संकोच करने का कोई कारण नहीं है, स्पष्ट रूप से बोलना चाहिए। जातिगत भेदभाव की गंभीरता को दूर करने के लिए जिस प्रकार रोटी व्यवहार के बंधन तोड़े गए हैं, उसी प्रकार बेटी व्यवहार के बंधन भी तोड़े जाने चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि,असमानता का उन्मूलन और हिंदू संगठन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
संघ के विद्यमान सरसंघचालक मोहन भागवत भी कई कार्यक्रमों में इस विषय पर संघ का पक्ष बार-बार रख चुके हैं। वे स्पष्ट रूप से इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सभी को मुक्त मंदिर प्रवेश, एक श्मशान और समान जल स्रोत होना चाहिए। तदनुसार, कई स्वयंसेवक धार्मिक, व्यावहारिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सभी को समान अधिकार मिले इसके लिए प्रयत्नशील हैं।
कृति पर संघ का जोर:-
जो डॉ हेडगेवार की मौलिक सोच और उनके बाद के सभी सरसंघचालकों की समयानुकूल सोच और विचार-अभिव्यक्ति के माध्यम से साकार संघ की भूमिका कृति मे उतरे इसलिए संघ अत्यंत सचेत प्रयास कर रहा है। यह संघ के आधिकारिक स्थिति दस्तावेज़ और विभिन्न कार्यक्रमों और गतिविधियों में परिलक्षित होता है। संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित प्रस्ताव संघ के आधिकारिक दस्तावेज हैं। संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने 1981 में तीन प्रस्ताव पारित कर आरक्षण व्यवस्था को जारी रखने पर जोर दिया, 1990 में सरकार द्वारा नवबौद्धों को आरक्षण देने का स्वागत किया और 1994 में कहा कि, धर्मान्तरित अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण उचित नहीं है यह दस्तावेज़ के रूप में आज भी उपलब्ध हैं।
संघ ने अपने आंतरिक संगठन, संघ की शाखा में समाज के सभी वर्गों के लिए मुक्त प्रवेश, समानता की भावना, सद्भाव की संस्कृति के साथ-साथ विशेष कार्यक्रमों एवं गतिविधियों के माध्यम से समाज में एक निश्चित भूमिका निभाई है। और नियमित कार्यक्रमों के माध्यम से स्वयंसेवकों को आसानी से सिखाया जाता है, स्वयंसेवकों की समानता की भूमिका जो संघ के गीतों, चर्चाओं और बौद्धिक वर्गों द्वारा आयोजित विषयों के माध्यम से विकसित की जाती है। संघ ने मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम परिवर्तन, ‘रिडल्स’ जैसे कई समाज में विभाजन फैलाने वाले आंदोलनों के दौरान सामाजिक परिवर्तन की भूमिका निभाई है। संघ के प्रयासों से, तिरूपति और नासिक के मंदिरों ने वंचित समुदायों के भाइयों के लिए पुजारी प्रशिक्षण कक्षाएं आयोजित कीं। उससे वंचित समाज से पुरोहितों का निर्माण हुआ। अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला 1989 में अनुसूचित जाति के सदस्य रामकृपाल चौपाल ने रखी थी और आज वह तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। यह घटना एक वैचारिक एवं सामाजिक क्रांति का द्योतक है।
मजबूत वैचारिक आधार:-
समय के साथ-साथ विभिन्न विषयों की शब्दयोजना बदलती गयी। फिर भी संपूर्ण हिंदू समाज द्वारा जन्म से निर्धारित श्रेष्ठता और हीनता की धारणाओं को त्यागकर गौरवशाली विरासत की गौरवपूर्ण नींव पर एक मजबूत संगठन बनाने का प्रयास जारी है। संघ अपने हिंदू संगठन के ध्येयपर अडिग है। इस लक्ष्य में समाज का आपसी भेदभाव उन्मूलन निहित है। हिंदू एकता के इस काम में जो सामाजिक मुद्दे समस्या बने हुए हैं, उन पर संघ लगातार काम कर रहा है, इस संबंध में बहुत काम किया गया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इसका एक मजबूत वैचारिक आधार है। इस शताब्दी काल में संघ का यह सामाजिक कार्य निश्चित ही महत्वपूर्ण है।
लेखक:- विट्ठल कांबले
लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कोंकण प्रांत कार्यवाह हैं।