सपनों को सच बनानेवाले कर्मयोद्धा तिलक
तिलक ने संकल्प लिया कि वे कभी सरकारी नौकरी नहीं करेंगे तथा नई पीढ़ी को सस्ती एवं अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए निजी उच्च विद्यालय और महाविद्यालय चलाएँगे। उन्होने २ जनवरी, सन् १८८० को पूना में ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ शुरू किया।फिर ‘डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी ‘ और ‘फर्ग्युसन महाविद्यालय की स्थापना की।
बाल गंगाधर तिलक का जन्म २३ जुलाई, सन् १८५६ ई. को रत्नागिरि (महाराष्ट्र ) में एक सुसंस्कृत, मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक पहले रत्नागिरि में सहायक अध्यापक थे और फिर पूना तथा उसके बाद ‘ठाणे’ में सहायक शिक्षा उप -निरीक्षक हो गए ।वे अपने समय के अत्यंत लोकप्रिय शिक्षक थे। उन्होंने ‘त्रिकोणमिति’ और ‘व्याकरण’ पर पुस्तकें लिखीं।जब बाल गंगाधर तिलक १६ वर्ष के थे उनके पिता की मृत्यु सन् १८७२ ई. में हो गयी।अपने पिता की मृत्यु के चार महीने के बाद ही बाल गंगाधर तिलक ने मैट्रिक की परीक्षा दी और उसमें उत्तीर्ण हुए। फिर उच्च शिक्षा के लिए डेक्कन महाविद्यालय में उन्होने नामांकन कराया। वहां से १८७६ में बी.ए. आनर्स की परीक्षा पास की फिर सन् १८७९ में उन्होंने बंबई विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की परीक्षा पास की।
क़ानून की पढ़ाई करते समय उनकी मित्रता गोपाल गणेश आगरकर से हुई जो बाद में ‘फ़र्ग्युसन कॉलेज’ के प्राचार्य हो गए। दोनों दोस्तों ने देशवासियों की सेवा की सर्वोत्तम योजनाओं की कल्पना और उसके विमर्श करते हुए बहुत समय एक साथ बिताया। अंत में उन्होंने संकल्प लिया कि वे कभी सरकारी नौकरी नहीं करेंगे तथा नई पीढ़ी को सस्ती एवं अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए निजी उच्च विद्यालय और महाविद्यालय चलाएँगे। उनके साथी छात्र इन आदर्शवादी बातों पर उनकी हँसी उड़ाते थे। लेकिन इन उपहासों या बाहरी कठिनाइयों का कोई असर उन दोनों उत्साही युवकों पर नहीं हुआ।
संयोग से उन्हीं दिनों ‘मराठी के सर्वोत्तम गद्य-लेखक’ के रूप में प्रसिद्ध विष्णु कृष्ण चिपलूनकर उपाख्य ‘विष्णु शास्त्री’ से तिलक और आगरकर मिले। विष्णु जी सरकारी नौकरी त्यागकर पुणे एक प्राइवेट हाईस्कूल चलने के उद्देश्य से आए थे। तिलक और आगरकर ने उनकी योजना को जानने के बाद उनके साथ विचार-विमर्श किया। बाद में इन तीनों के साथ एक और व्यक्ति जुड़ गए – ‘एम.बी. नामजोशी’, जो असाधारण बुद्धि और ऊर्जा से परिपूर्ण थे। चिपलूनकर और तिलक ने नामजोशी की सहायता से २ जनवरी, सन् १८८० को पूना में ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ शुरू किया। ‘वी.एस. आप्टे’ जून में और आगरकर वर्ष के अंत में एम.ए. करने के बाद उस स्कूल में शामिल हो गए।
इन पाँच मनीषियों ने अपनी गतिविधियों को स्कूल तक ही सीमित नहीं रखा।इसके बाद उन्होंने दो साप्ताहिक समाचार पत्रों, मराठी में’ केसरी’ और अंग्रेज़ी में ‘द मराठा’, के माध्यम से लोगों की राजनीतिक चेतना को जगाने का काम शुरू किया। इन समाचार- पत्रों के द्वारा ब्रिटिश शासन तथा उदार राष्ट्रवादियों की(जो पश्चिमी तर्ज़ पर सामाजिक सुधारों एवं संवैधानिक तरीक़े से राजनीतिक सुधारों का पक्ष लेते थे) कटु आलोचना के लिए वह विख्यात हो गए। उनका मानना था कि सामाजिक सुधार में जनशक्ति खर्च करने से वह स्वाधीनता के राजनीतिक संघर्ष में पूरी तरह नहीं लग पाएगी।उन पत्रों ने देसी पत्रकारिता के क्षेत्र में शीघ्र ही अपना विशेष स्थान बना लिया। विष्णु शास्त्री चिपलूनकर ने इन दोनों समाचारपत्रों के लिए दो मुद्रणालय भी स्थापित किये । छपाई के लिए ‘आर्य भूषण’ और ‘ललित कला’ को प्रोत्साहन देने के वास्ते ‘चित्रशाला’ स्थापित की गई। इन गतिविधियों में कुछ समय के लिए पाँचों व्यक्ति पूरी तरह व्यस्त हो गए। उन्होंने इन कार्यों को आगे बढ़ाया। ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ ने शीघ्र ही पुणे के विद्यालयों में में पहला स्थान प्राप्त कर लिया। ‘मराठा’ और ‘केसरी’ भी डेक्कन के प्रमुख समाचारपत्र बन गए।