तिलक के लिए न्याय पाने के सभी रास्ते बंदकर दिए गए
तिलक का वकील बाद में इंग्लैंड का प्रधानमंत्री बना
प्रिवी काउंसिल में न्याय की अपील की गई।श्री एसक्विथ ने( जो बाद में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री हुए) १९ नवंबर, १८९७ को तिलक की अपील पर बहस की। लॉर्ड हेल्सबरी, लॉर्ड चांसलर( जो उस समय इंग्लैंड के कैबिनेट मंत्री थे) लीक से हटकर काउंसिल की बैठक की अध्यक्षता करने गए। सभी को पता था कि कैबिनेट के एक अन्य मंत्री ने इस मुक़दमें को चलाने की मंजूरी दी थी। श्री एसक्विथ ने अपनी बहस में इस बात पर बहुत ज़ोर दिया कि न्यायमूर्ति स्ट्रैची ने जूरी को ग़लत निर्देश दिए थे। लेकिन प्रिवी काउंसिल ने समूची गवाही के सार और विवरण पर विचार करने के बाद फ़ैसले में परिवर्तन करने लायक़ कोई बात नहीं पाई। परिणामस्वरूप अपील करने की अनुमति देने का प्रार्थनापत्र नामंजूर कर दिया गया।
इस प्रकार तिलक के लिए न्याय पाने के सभी रास्ते बंदकर दिए गए ,लेकिन इन घटनाओं का गहरा असर ब्रिटेन की जनता पर पड़ा। प्रो0 मैक्समुलर और सर विलियम हंटर ने अपनी विशाल हृदयता के साथ, जो उनके चरित्र का अभिन्न पहलू था, महारानी को एक प्रतिवेदन भेजने का आयोजन किया। इस पर महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के हस्ताक्षर थे। इस प्रतिवेदन में अनुरोध किया गया था कि तिलक के प्रति इस आधार पर दया प्रदर्शित की जाएँ कि वे एक विद्वान् हैं और उनकी रिहाई के पक्ष में बहुत कुछ कहा जा सकता है। अन्य बातों के साथ इस प्रार्थनापत्र का असर हुआ और बातचीत के बाद तिलक कुछ औपचारिक शर्तें मानने के लिए तैयार हो गए और उन्हें मंगलवार ६ सितंबर, १८९८ को ‘बंबई के महामहिम गर्वनर’ के आदेशों पर छोड़ दिया गया।