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वे पंद्रह दिन…/10 अगस्त,1947

स्वाधीनता का अमृत महोत्सव

दस अगस्त…. रविवार की एक अलसाई हुई सुबह. सरदार वल्लभभाई पटेल के बंगले अर्थात 01, औरंगजेब रोड पर काफी हलचल शुरू हो गयी है. सरदार पटेल वैसे भी सुबह जल्दी सोकर उठते हैं. उनका दिन जल्दी प्रारम्भ होता है. बंगले में रहने वाले सभी लोगों को इसकी आदत हो गयी है. इसलिए जब सुबह सवेरे जोधपुर के महाराज की आलीशान चमकदार गाड़ी पोर्च में आकर खड़ी हुई, तब वहां के कर्मचारियों के लिए यह एक साधारण सी बात थी.

जोधपुर नरेश, हनुमंत सिंह…. ये कोई मामूली व्यक्ति नहीं थे. राजपूताना की सबसे बड़ी रियासत. जिसका इतिहास बहुत पीछे, यानी सन् 1250 तक जाता है. पच्चीस लाख जनसंख्या वाली यह विशाल रियासत, छत्तीस हजार स्क्वेयर मील में फ़ैली हुई है. पिछले कुछ दिनों से मोहम्मद अली जिन्ना इस रियासत को पाकिस्तान में विलीन कराने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं. वी.के. मेनन ने यह सारी जानकारी सरदार वल्लभभाई पटेल को दी थी. इसीलिए सरदार जी ने जोधपुर नरेश हनुमंत सिंह को अपने घर आमंत्रित किया हुआ है.

सरदार पटेल, हनुमंत सिंह को साथ लेकर अपने विशाल और शानदार दीवानखाने में आए. आरंभिक औपचारिक बातचीत के बाद सरदार पटेल सीधे मूल विषय पर आ गए, “मैंने सुना है कि लॉर्ड माउंटबेटन से आपकी भेंट हुई थी, क्या चर्चा हुई?”

हनुमंत सिंह : जी सरदार साहब. भेंट तो हुई, लेकिन कोई ख़ास चर्चा नहीं हुई है.

सरदार पटेल : परन्तु मैंने तो सुना है कि आपकी भेंट जिन्ना से भी हुई है और आपने यह निर्णय लिया है कि आपकी रियासत स्वतन्त्र रहेगी?

हनुमंत सिंह : (झेंपते हुए) हां, आपने एकदम सही सुना है.

सरदार पटेल : यदि आपको स्वतन्त्र रहना है, तो रह सकते हैं. परन्तु आपके इस निर्णय के बाद यदि जोधपुर रियासत में कोई विद्रोह हुआ तो भारत सरकार से आप किसी सहायता की उम्मीद ना रखें.

हनुमंत सिंह : परन्तु जिन्ना साहब ने हमें बहुत सी सुविधाएं और आश्वासन दिए हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि वे जोधपुर को कराची से रेलमार्ग द्वारा जोड़ देंगे. यदि ऐसा नहीं हुआ, तो हमारी रियासत का व्यापार ठप्प पड़ जाएगा.

सरदार पटेल : हम आपके जोधपुर को कच्छ से जोड़ देंगे. आपकी रियासत के व्यापार पर कतई कोई फर्क नहीं पड़ेगा. और हनुमंत जी, एक बात और है कि आपके पिताजी यानी उमेश सिंह जी, मेरे अच्छे मित्रों में से एक थे. उन्होंने मुझे आपकी देखभाल का जिम्मा सौंपा हुआ है. यदि आप सीधे रास्ते पर नहीं चलते हैं, तो आपको अनुशासन में लाने के लिए मुझे आपके पिता की भूमिका निभानी पड़ेगी.

हनुमंत सिंह : सरदार पटेल साहब, आपको ऐसा करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. मैं कल ही जोधपुर जाकर भारत देश के साथ विलीनीकरण के करार पर अपने हस्ताक्षर करता हूं.

अब केवल अगले चार दिन ही अखंड रहने वाले इस भारत में, शाम की विभिन्न छटाएं देखने को मिल रही हैं. जहां सुदूर पूर्व अर्थात् असम और कलकत्ता में दीपक और बिजली जलाने का समय हो चुका है, वहीं पूर्व में पेशावर और माउंटगोमरी में अभी भी धूप अपने हाथ-पैर लंबे कर, अलसाई हुई मुद्रा में शाम ढलने का इंतज़ार कर रही है.

इसी पृष्ठभूमि में अलवर, हापुड, लायलपुर, अमृतसर जैसे शहरों से भयंकर दंगों की ख़बरें लगातार आती जा रही हैं. अनेक हिंदुओं के मकानों पर आग लगाए हुए कपड़े के गोले फेंके जा रहे हैं. अनेक हिंदू बस्तियों में व्यापारियों की दुकानें लूटकर उन्हें खाली कर दिया गया है.

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लाहौर का संघ कार्यालय…. वैसे तो छोटा सा ही है, परन्तु आज कार्यकर्ताओं/स्वयंसेवकों की भीड़ से भरा हुआ है. रविवार दस अगस्त की रात को दस बजे भी इस कार्यालय में खासी चहल-पहल है. स्वयंसेवकों के चेहरे से साफ़ दिख रहा है कि वे तनावग्रस्त हैं. लाहौर के हिन्दू और सिखों को सुरक्षित रूप से भारत की तरफ वाले पंजाब कैसे पहुंचाया जाए, इसकी चिंता सभी के मन में है.

कार्यालय के बाहर संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार की अर्ध-प्रतिमा लगी हुई है. पास के मकान से आने वाले बल्ब की पीली रोशनी मूर्ति पर पड़ने से वह चेहरा चमक रहा है. डॉक्टर हेडगेवार की देश में यह पहली मूर्ति है. लेकिन यह मूर्ति गवाह है कि पंजाब प्रांत के स्वयंसेवकों ने पिछले दिनों में हिंदू-सिखों को बचाने के लिए किस प्रकार अदम्य साहस, धैर्य, पुरुषार्थ एवं जिजीविषा का परिचय दिया है….!

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