शहरी नक्सलवादी षड्यंत्र को समझने की आवश्यकता : देवेंद्र
डोम्बिवली : महाराष्ट्र विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि अगर कोई बन्दुक लेकर मुकाबला करे तो उससे निपटना बहुत आसान है लेकिन यदि कोई विचार के स्तर पर विष फैलाये तो उससे लड़ना बहुत ही कठिन है। हमें इसी परिप्रेक्ष में शहरी नक्सलवाद को समझना होगा। वे प्रख्यात लेखक व् व्याख्याता डॉक्टर सच्चिदानंद शेवड़े की षष्टिपूर्ति पर सावित्रीबाई फुले रंगमंदिर में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे।इससे पूर्व उन्होने शेवड़े लिखित ” डावी विषवल्ली ” नामक पुस्तक और गौरवग्रंथ का लोकार्पण किया। शेवड़े की यह ५० वीं पुस्तक है।
इस अवसर पर देवेंद्र ने कहा कि त्रिपुरा में जो घटना हुई ही नहीं उसकी आड़ में अमरावती में भारी हिंसा की गई। त्रिपुरा में सी पी आई के भवन में आग लगी थी उसके फोटो को यह कहकर दुष्प्रचारित किया गया कि मस्जिद में आग लगाई गई है. दिल्ली में कोई किताब जलती है तो उसका फोटो यह कहकर प्रचारित किया जाता है की कुरआन को जलाया गया है। एक व्यक्ति गलत ट्वीट करता है फिर उसको बहुत सारे लोग वायरल करते हुए यह माहौल बनाने का प्रयास करते हैं कि अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है।
कोई सम्बन्ध न होने पर भी ५० हज़ार लोगों का हुजूम मोर्चा निकालता है , हिन्दुओं के दुकानों को जलाया और तोड़ दिया जाता है। दूसरे दिन जिनकी दुकानें जलाई गई हैं वे रास्ते पर आ जाते हैं और उनपर पुलिस कार्रवाई करती है। मोदी सरकार को हटा नहीं सकते तो मुट्ठी भर लोग इस तरह से अराजकता फैलाते हैं। ये लोग उदारवादी नहीं उधारवादी हैं और उनकी हरकतों पर रोक लगाने की आवश्यकता है।
वामपंथी विषवेल यह बात फैला रहे हैं कि उनके विचार ही सर्वोत्तम हैं। आदिवासी समाज को वे अपनी बातों में बहलाकर नक्सलवाद को बढ़ा रहे हैं। राज्य के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री इस दिशा में आँखें मूंदे बैठे हैं। लेकिन लम्बे समय तक वे ऐसा नहीं कर सकेंगे। सच्चिदानंद शेवड़े सरीखे राष्ट्रवादी विचार फैलानेवाले इसके मुकाबले में आ रहे हैं। पुलिस ने नक्सलवादियों का नामोनिशान मिटाना प्रारम्भ किया है।
उन्होने कहा कि वामपंथी शक्तियां देश के विभिन्न बडे -बड़े विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों के मन में राष्ट्रविरोधी भावनाएं उत्पन्न करके अराजकता की स्थिति पैदा कर रहे हैं। इस तरह से शहरी नक्सलवाद बना हुआ है। उन चेहरों को सामने लाने में समय लगेगा क्योंकि उन्होने प्राध्यापक -कवि -पत्रकार जैसे मुखौटे लगा लिए हैं।इन लोगों को चीन , पकिस्तान , आई एस आई,एस से वित्तीय सहायता मिलती है। भीमा -कोरेगाव दंगे में हमारी सरकार में पुलिस ने ऐसे लोगों को बेनकाब किया था।