Opinion

‘आर्थिक सुधार’ और ‘राजनीतिक व्यवहार’ के खांचे में फंसे शाहबाज

पाकिस्तान में शाहबाज शरीफ सरकार संस्थापित हो चुकी है। अपदस्थ इमरान खान अपने जख्मों को चाटते हुए शरीफ सरकार के खिलाफ अभियान छेड़े पड़े हैं। इमरान खान का आरोप है कि उनकी सरकार को अमेरिका का अंधानुकरण ना करने के कारण गिराया गया । इमरान खान, शरीफ के नेतृत्व में बनी गठबंधन सरकार को भ्रष्टाचार में संलिप्त अमेरिकापरस्तों की सरकार घोषित करने में कोई कमी नहीं कर रहे ।उन्हें विभिन्न शहरों में समर्थन भी हासिल हो रहा है। क्या शाहबाज शरीफ की सरकार दीर्घायु होगी ? क्या पाकिस्तान में इमरान खान की वापसी होगी? क्या शरीफ सरकार पाकिस्तान को आर्थिक विपन्नता के संकट से मुक्त करा पाएगी? क्या पाकिस्तान एक बार फिर अमेरिका के समर्थन और संरक्षण को हासिल कर पाएगा? क्या पाकिस्तान और भारत के रिश्तों में शरीफ के कार्यकाल में सुधार की संभावनाएं हैं ?इन्हीं प्रश्नों में पाकिस्तान और शरीफ सरकार दोनों का भविष्य मौजूद है ।

 पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की पहली प्राथमिकता पाकिस्तान पर आसन्न आर्थिक संकट से जूझना है ।पाकिस्तान के वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल बीते सप्ताह ही वाशिंगटन की यात्रा पर पहुंचे। वह हर हाल में इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) से पाकिस्तान के लिए राहत पैकेज प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं । प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ भी शीघ्र ही चीन और सऊदी अरेबिया की यात्रा कर उन  देशों से आर्थिक पैकेज प्राप्त करने की कवायद करेंगे। जून अंत तक पाकिस्तान को 2.5 बिलीयन डॉलर के कर्ज की किस्त अदा करनी है ।यदि पाकिस्तान जून माह में यह किस्त अदा करने में विफल होता है तो उसका लोन अकाउंट डिफॉल्ट हो जाएगा। उसे वित्त वर्ष 2022-23 में 20 बिलियन डॉलर के कर्ज की किश्त अदा करने की अनिवार्यता है ।ऐसे में शाहबाज शरीफ को सबसे पहले पाकिस्तान के लिए और कर्ज जुटाने पर जुटना  होगा।

आईएमएफ ने पाकिस्तान को 6 बिलियन डॉलर एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (ईएफएफ) की मंजूरी दी थी। पिछली इमरान खान सरकार ने आईएमएफ की शर्तों का उल्लंघन कर दिया था ।जिसके कारण आईएमएफ से ईएफएफ की यह सुविधा भी बाधित हो गई थी ।आईएमएफ ने पाकिस्तान को बाजारोन्मुख सुधार करने की शर्त पर 39 महीनों में 6 बिलियन डॉलर के ईएफएफ की मंजूरी दी थी। इमरान सरकार ने आईएमएफ के समक्ष स्वीकार की गई शर्तों का पालन करने के बजाए ईंधन की सब्सिडी जैसी सुविधाएं जारी रखीं जिससे आईएमएफ के साथ किया गया उसका करार भंग हुआ ।अब पाकिस्तान के नए वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल आईएमएफ विश्वास दिला रहे हैं कि पाकिस्तान उनकी शर्तों का अनुपालन करेगा। उसे वित्तीय राहत प्रदान की जाए ।

पाकिस्तान में जिस अवधि में राजनीतिक संकट उभरा उसी समय उसके आर्थिक संकट में भी अभिवृद्धि हुई। फरवरी 2022 से अप्रैल 2022 के बीच पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी गिरावट आई । स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में फरवरी माह से अप्रैल माह के बीच में 5.1 बिलियन डॉलर की कमी आई । अब स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान के पास कुल 11 .3 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है ।आईएमएफ का मानना है आने वाले महीनों में पाकिस्तान में मुद्रास्फीति की दर में उछाल आएगा । 2021 में पाकिस्तान में मुद्रास्फीति की दर 8.9 फीसद थी जो वर्तमान वित्त वर्ष में 11.2 फीसदी होने की उम्मीद है। इस वर्ष यह सकल राष्ट्रीय उत्पाद का 5.3 फ़ीसदी होने का अनुमान है। ऐसे में जब तक पाकिस्तान की नई सरकार वित्तीय सुधार स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होती तब तक उसे किसी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसी से बड़े राहत की अपेक्षा कम है।

पाकिस्तान में जिस तरह के राजनीतिक हालात हैं ,उसमें किसी भी समय सरकार गिर सकती है। क्योंकि शाहबाज शरीफ सरकार में विपरीत विचारधाराओं वाले तमाम दल इमरान खान के विरोध में एकत्रित हुए हैं ।किंतु सबको पता है कि उन्हें अगले वर्ष हर हाल में चुनाव का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा कोई भी निर्णय सरकार द्वारा लिए जाने की स्थिति में साथ नहीं खड़े होंगे जिसमें उनके अलोकप्रिय होने की आशंका हो ।

इमरान खान पहले से ही आरोप लगा रहे हैं कि सरकार में बैठे लोग पाकिस्तान के नागरिकों के हितों की अपेक्षा विदेशी ताकतों के समर्थक हैं । यदि सरकार कठोर निर्णय लेती है तो आर्थिक तौर पर सरकार के अलोकप्रिय होने में समय नहीं लगेगा। शाहबाज शरीफ की सरकार में सब कुछ ठीक चलने की संभावनाएं सीमित हैं। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी भले ही इमरान खान के कारण फिलवक्त शाहबाज शरीफ का नेतृत्व स्वीकार रही है। लेकिन उसे जैसे ही अवसर मिलेगा वह अपने पारंपरिक प्रतिद्वंदी शरीफ परिवार के खिलाफ ताल ठोक कर खड़ा हो जाएगा । बिलावल भुट्टो और मरियम शरीफ के बीच प्रतिद्वंदिता जग जाहिर है ।आसिफ अली जरदारी और बिलावल भुट्टो की लंदन यात्रा के बाद दोनों क्या रुख अपनाते हैं इस पर भी शाहबाज शरीफ सरकार का भविष्य निर्भर करता है।

 शहबाज शरीफ अपने पारिवारिक प्रतिष्ठा के कारण सऊदी अरब के सुल्तान के प्रिय हैं । खबर है की सऊदी अरब के सुल्तान मोहम्मद बिन सलमान ने शाहबाज शरीफ गर्मजोशी से मुबारकबाद भी दिया है। सनद रहे कि परवेज मुशर्रफ की बगावत से नवाज शरीफ की जान भी सऊदी अरब के सुल्तान ने ही बचाई थी । सऊदी अरब के सुल्तान ने बीते दिनों इजिप्ट को 20 बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद की है ।शहबाज शरीफ भी सऊदी सुल्तान से पाकिस्तान के लिए आर्थिक सहायता की अपेक्षा रखते हैं । इमरान खान ने चीन से 21 बिलियन डॉलर के आर्थिक सहयोग की मांग की थी जिसमें से 10.7 बिलियन डॉलर के कर्ज के विलंबित भुगतान की सुविधा भी मांगी गई थी । भावी खर्च के लिए चीन से 10 बिलियन डॉलर की रकम डिपॉजिट के तौर पर अपेक्षित थी । चीन ने इमरान खान को कोई विशेष सुविधा नहीं दी । चीन से भी शाहबाज शरीफ के रिश्ते इमरान खान की तुलना में बेहतर हैं। देखना है शाहबाज शरीफ चीन से पाकिस्तान के लिए क्या ला पाते हैं !

जहां तक अमेरिका से पाकिस्तान के संबंधों का मामला है निश्चित तौर पर शाहबाज शरीफ की सरकार को अमेरिकी संस्थानों में अधिक समर्थन हासिल रहेगा ।चूंकि पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में शाहबाज शरीफ पाकिस्तानी सेना के ज्यादा करीब रहे हैं । विशेषज्ञों का मानना है कि शहबाज शरीफ अपने बड़े भाई नवाज शरीफ की तरह सेना से टकराते नहीं हैं। संबंधों के मामले में सेना नवाज शरीफ की तुलना में शाहबाज को अधिक विश्वासपात्र पाती है । पाकिस्तान की विदेश नीति पर हमेशा सेना का नियंत्रण रहता है । पाकिस्तानी सेना में प्रमुख पदों पर बैठे लोग अपना हित अमेरिका के संरक्षण में ही पाते हैं । पाकिस्तानी सेना के पूर्व, वर्तमान और भावी नियंताओं के परिजन अमेरिका और यूरोप में ही बसे हुए हैं . इसलिए उनका प्रभाव और झुकाव हमेशा अमेरिकोन्मुखी  रहना है । इसलिए जब इमरान खान ने पाकिस्तान की संसद में खुलकर अमेरिका को आरोपित किया तब पाकिस्तानी सेना के प्रमुख कमर बाजवा ने तत्काल इमरान खान के आरोपों का खंडन किया । अमेरिकी प्रशासन भी चाहेगा कि पाकिस्तान पूरी तरह से ड्रैगन के जबड़े में ना जाने पाए ,इसलिए संभव है  शाहबाज शरीफ के कार्यकाल में अमेरिका पाकिस्तान को पुचकारना प्रारंभ करे ।

अब बात आती है पाकिस्तान से भारत के संबंधों की । पाकिस्तान की बुनियाद भारत विरोध पर कायम है । शाहबाज शरीफ ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही सबसे पहले कश्मीर के मुद्दे पर बयान दिया । यदि कश्मीर का मुद्दा पाकिस्तान छोड़ दे तो वहां सेना के अस्तित्व का कोई कारण शेष नहीं बचता । पाकिस्तान की सेना कश्मीर जीतने का ख्वाब दिखाकर ही आज तक पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शक्तियों की तुलना में कहीं ज्यादा प्रभावशाली है । बीते 75 वर्षों में पाकिस्तान में कोई सरकार अपना कार्यकाल नहीं पूरा कर सकी । निर्वाचित सरकारें अलोकप्रिय हो जाती हैं । जुल्फिकार अली भुट्टो जैसा विदेशी मामलात का विशेषज्ञ फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया जाता है । बेनजीर भुट्टो को गोली मार दी जाती है ।नवाज शरीफ की सरकार बारंबार भंग की जाती है । इमरान खान अपनी सारी लोकप्रियता सेना के सामने बौनी पाते हैं ।

पाकिस्तान के राजनेताओं की तुलना में सेना के अफसरों की लोकप्रियता का एकमात्र कारण है पाकिस्तानी आवाम का यह विश्वास कि किसी दिन यह सेना कश्मीर जीतकर पाकिस्तान में मिला लेगी । इसलिए जो शासन में आएगा वह भारत विरोध में कश्मीर कश्मीर चिल्लाएगा ही । आने वाले कुछ महीनों में ही शहबाज शरीफ और बिलावल भुट्टो समेत शरीफ सरकार के गठबंधन में शामिल सभी दलों को चुनावों का सामना करना है । इसलिए भारत विरोध करना उनकी मजबूरी है । आतंकवाद पर जब तक पाकिस्तान निर्णायक कदम नहीं उठाता तब तक भारत के साथ उसके रिश्तों के मधुर होने की संभावनाएं ना के बराबर हैं । ऐसे में पखवाड़े भर पुरानी शाहबाज शरीफ सरकार के बारे में यही कहा जा सकता है कि वह इसी तरह टिक जाए और पाकिस्तान को टिकाने की दिशा में कुछ कर पाए  । इससे अधिक उससे अपेक्षा करना उस पर अत्याचार होगा ।

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