विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान: भाग 16
विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 16 (16-30)
कांच और भारतीय विज्ञान
कांच एक कठोर, रासायनिक रूप से निष्क्रिय और आसानी से साफ होने वाला पारदर्शी पदार्थ है जिसका आधुनिक जीवन में व्यापक उपयोग हो रहा है। इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व, भारतीयों को कांच बनाने की विधि एवं धातु लवणों द्वारा कांच को रंगीन बनाने का तरीका आता था।
प्राचीन भारत में; कांच का प्रयोग मनके, कंगन चूड़ी व प्रयोगशाला पात्र बनाने में होता था । एक विशाल लेंस ‘महत्तभिंग’ का चीन को निर्यात करने का उल्लेख मिलता है। केपिका, उत्तर प्रदेश में प्राचीन (5वीं सदी) कांच के कारखाने के प्रमाण मिले हैं। 40 सेमी x42 सेंमी सेंमी. व 10 किलोग्राम भार वाले कई आमापों व रंगों के कांच के पिंड प्राप्त हुये हैं।
केंद्रीय ग्लास एवं सिरामिक अनुसंधान संस्थान कोलकाता में कांच के परीक्षण से पता लगा है कि एल्युमिना की अधिक मात्रा के साथ यह सोडा लाइम कांच है। संप्रति एल्युमीनियम सिलिकेट के ऐसे पात्र बनाये जाते हैं जिन्हें रसोईघर में सीधा स्टोव पर रखा जा सकता है।
सुश्रुत ने कांच व स्फटिक में भेद किया है। पीले, नारंगी, लाल, चमकदार सफेद, पारभासी हरे, नीले एवं बैंगनी रंगों के मौर्य व कुषाण काल के मनके तक्षशिला में मिले हैं।परीक्षण से पता चला है कि तक्षशिला का कांच सोडा लाइम अथवा सोडा लाइम लेड कांच है। आज उच्च गुणवत्ता की पारदर्शी प्रकाशीय वस्तुयें बनाने में लेड ग्लास का इस्तेमाल होता है ।
सबसे आम काच सोडा-लाइम काच है जो शताब्दियों से खिड़कियाँ और गिलास आदि बनाने के काम में आ रहा है। सोडा-लाइम काँच में लगभग 75% सिलिका (SiO2), सोडियम आक्साइड (Na2O) और चूना (CaO) और अनेकों अन्य चीजें कम मात्रा में मिली होती हैं।
प्राचीन भारत में स्फटिक (Quartz) से बनी सामग्री, उत्तम वस्तु मानी जाती थी। भारत में कई प्रदेशों में प्राचीन काँच के टुकड़े प्राप्त हुए हैं। उस समय यहाँ से अनिर्मित काँच बहुत अधिक मात्रा में यूरोप और उत्तरी इटली को निर्यात किया जाता था; यहाँ तक कि काँच निर्माण के लिए रासायनिक पदार्थ भी वेनिस भेजे जाते थे। 12 वीं शताब्दी में भारत के प्रत्येक प्रांत में काँच की चूड़ियों, शीशियों और खिलौनों का निर्माण होता था।