हिन्दू पद्पादशाही रक्षक,छत्रपति संभाजी महाराज;
धर्म के लिए तथा अपनी संस्कृति को बचाने के लिए जो कोई पुण्यात्माओ ने इस धरती जन्म लिया हे उनमे से एक है धर्मध्वज रक्षक,हिन्दू पद्पादशाही संरक्षक छत्रपति संभाजी महाराज!!
छत्रपति संभाजी ने अपने पिता के सपने को साकर करने के लिए, इसे आगे ले जाते हुए इस दिशा में कई सराहनीय कदम उठाये। छत्रपति संभाजी महाराज ने इसके लिए अलग से विभाग ही बना दिया था, जो कि पुन: धर्मान्तरण का कार्य देखता था। इस विभाग के अंतर्गत उन समस्याओं को देखा जाता था, जिसमें किसी व्यक्ति या परिवार को मुगलों ने जबरन इस्लाम बना दिया हो, लेकिन वे अपने हिन्दू धर्म को छोड़ना नहीं चाहते हो और वापिस हिन्दू बनने की मंशा रखते हो।अशुद्ध हो गया हैं, छत्रपति संभाजी द्वारा किए गए इस नेक प्रयास से उस समय जैसे कोई परिवर्तन की लहर उठी. और इस तरह से बहुत से हिन्दू से मुस्लिम बने लोग अपने धर्म में लौट आये.छत्रपति संभाजी जिन्होने अपना संपूर्ण जीवन देश और हिंदुत्व को समर्पित कर दिया।
अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में उन्होंने हिन्दू धर्म का पालन निष्ठांपूर्वक किया। औरंगजेब के अत्याचार सहकर उन्होंने धर्म ,त्याग,अभिवृत्ति का आदर्श स्थापन किया। अंतिम समय में भी धैर्य ,हिम्मत ,साहस तथा शौर्य का परिचय उन्होंने मुघलो को करवाया। मुघलो से संघर्ष के दौरान उन्होंने अपने नेतृत्व का परिचय उन्होंने औरंगजेब को कराया। उनको चारो और से विप्पत्ति का सामना करना पडा था। उत्तरसे मुग़ल ,पश्चिम से इंग्रज और पोर्तुगीज,दक्षिण से बीजापुर,पूर्वसे गोलकोण्डा और स्वराज्य के अंतर्गत कलह इन सभी समस्याओंसे उन्होंने अपना नेतृत्व सिद्ध किया।
संघर्ष में बीता जीवन :
पोर्तूगीजोंसे सामना –
औरंगजेब लाखो की फौज लेकर महाराष्ट्र में आया परन्तु इतनी बड़ी सेना के लिए खाने,तथा अन्य साधनो की व्यवस्था करना मुश्किल हो रहा था। तब औरंगजेब को पोर्तुगीजो की याद आयी उसने खत लिखकर मदत की मांग की। पोर्तुगीज औरंगजेब को मदत करने के लिए राजी हो गए। परन्तु संभाजी महाराज ने पोर्तुगीज को तटस्थ रहने के लिए कहा था।लेकिन उन्होंने औरंगजेब की मदत की ,इससे तिलमिलाए संभाजी महाराज ने गोवा पर आक्रमण कर दिया।
लगभग चार बार संभाजी महाराज और पोर्तगीजोंका आरपार सामना हुवा। पोर्तगीजों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। उसमे फोंडा किला मैं हुई विनाशक लड़ाई में पोर्तुगीजोंकी हार हुई। यह देख कर गोवा की आम जनता बहुत खुश हुई ,अनेक वर्षोसे हो रही पीड़ा अंत संभाजी महाराज ने किया था। बीते वर्षोमें पोर्तुगीजो ने अनेक मंदिरोंका नुकसान किया था। इसका बदला लेने के लिए कुछ हिन्दू लोगोंने गोवा स्तित चर्च पर हमला किया ,तथा आगजनी की। इस वार्ता को सुन स्वधर्म अभिमानी और परधर्मके के प्रति आदर रखनेवाले संभाजी महाराज बड़े दुखी हुए।उन्होंने कहा कि स्वराज्य सभी धर्मो का आदर करता है। संभाजी महाराज ने ख्रिश्चन धर्म जिन्होंने अपनाया था, उन्हें फिरसे स्वधर्म वापस लिया।
सिद्दी को दी पटकनी ;
सिद्दी को मराठा स्वराज्य का अस्तीन का साप कहा जाता हे। जंजीरा तथा लगत के प्रदेशोपर उनकी पकड़ थी। स्वराज्य के सिद्दी लिए बड़ा खतरा था उसे सबक सीखाना बड़ा आवश्यक था। औरंगजेब ने सिद्दी से पहले ही संधान साध लिया था। संभाजी महाराज ने पहली बार जुलाई १६८१ उन्दरी के किले में हुई लढाई में सिद्दी को परास्त किया। किन्तु साप तो साप ही होता हे,उसे अपना जहर उगलना शुरू कर दिया। सिद्दी ने औरंगजेब को रसद और अन्य सामग्री भेजना जारी रखा। उसका पारिपत्य अब आवश्यक हो गया था। इसीलिए दिसम्बर १६८१ में जंजीरा मोहिंम शुरू की गयी। जंजीरा की रसद तोड़ी गयी और किले को चारो दिशाओ से घेर लिया गया,दिसम्बर १६८१ से लेकर ऑगस्ट १६८२ तक सिद्दी ने बड़ा प्रतिकार किया। दूसरी और औरंगजेब ने स्वराज्य में तबाही मचायी हुई थी उससे मुकाबला करने के लिए संभाजी महाराज को सिद्दी से संधि करनी पड़ी।
मुग़ल आक्रमण,और मराठा संघर्ष :
संभाजी महाराज का पूरा जीवन ही मुघलो के संघर्ष में बीत गया। औरंगजेब ने लाखो की सेना के साथ स्वराज्य पर आक्रमण कर दिया, छत्रपति संभाजी महाराज ने इस आक्रमण का पुरजोर प्रतिकार किया। इस आक्रमण की वजह से स्वराज्य की बड़ी हानि हुई। संभाजी महाराज ने सभी सरदारों को एकत्र किया, उन्हें विभिन्न जिम्मेदारियां दी गयी। परन्तु धन की बहोत हानि हो चुकी थी। अन्न -धान्य की कमतरता, सत्ता के लिए आपसी मतभेद,इससे उभरने के लिए बरहानपुर मोहिंम शुरू की गयी।बुरहानपुर मोहिम में मराठोंने औरंगजेब को अपना सामर्थ दिखा दिया। इस मोहीम में पुरे बरहनपुर को मराठोंने बंधक बना लिया। हिन्दू इलाको को छोड़कर बाकि पुरे शहर में लूट की गयी। लगभग एक कोटि मूल्य की लूट की गई। इस लूट ने मराठो का उत्साह बढ़ा दिया, संभाजी महाराज का नेतृत्व सर्वमान्य हो गया।
छत्रपति संभाजी महाराज का बलिदान:
जिस दिन वो रायगड के लिए प्रस्थान करने वाले थे उसी दिन कुछ ग्रामस्थ ने अपनी समस्या उन्हें करनी चाही| जिसके चलते छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने साथ केवल 200 सैनिक रख के बाकि सेना को रायगड भेज दिया| उसी वक्त उनके एक फितूर जिनको उन्होंने वतनदारी देने से इन्कार किया था.मुग़ल सरदार मुकरब खान के साथ गुप्त रास्ते से 5000 की फ़ौज के साथ वहां पहुंचे। इसलिए संभाजी महाराज को कभी नहीं लगा था की शत्रु इस और से आ सकेगा| उन्होंने लड़ने का प्रयास किया किन्तु इतनी बड़ी फ़ौज के सामने 200 सैनिकों का प्रतिकार काम कर न पाया और अपने मित्र तथा सलाहकार कवि कलश के साथ वह बंदी बना लिए गए (1 फरबरी, 1689)।
क्रुरकर्मा और धर्मांध औरंग ने छत्रपति संभाजी महाराज को अपना हिन्दुधर्म त्याग कर मुगलों का मुस्लिम धर्म अपनानें की मांग रखी थी लेकिन युगप्रवर्तक हिन्दु राजा छत्रपती श्री शिवाजी राजें का बेटा और अपने हिन्दु धर्म पर पुरी निष्ठा और श्रद्धा रखनें वाले धर्मवीर छत्रपती श्री संभाजी राजें ने ये मांग ठुकरा दी और इस्लाम का स्विकार कतई न करनें का निश्चय औरंग को बता दिया था|औरंगजेब ने दोनों की जुबान कटवा दी, आँखें निकाल दी| 11 मार्च 1689 हिन्दू नव वर्ष दिन को दोनों के शरीर के टुकडे करके औरंगजेब ने हत्या कर दी। किन्तु ऐसा कहते हैं कि हत्या पूर्व औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज से कहा की मेरे 4 पुत्रों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिन्दुस्थान कब का मुग़ल सल्तनत में समाया होता.
औरंगजेब ने सोचा था की मराठी साम्राज्य छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु पश्चात ख़त्म हो जाएगा। परंतु उसका सोचना गलत था, छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या की वजह से सारे मराठा एक साथ आकर लड़ने लगे| अत: औरंगजेब को दक्खन में ही प्राणत्याग करना पड़ा| उसका दक्खन जीतने का सपना इसी भूमि में दफन हो गया.अंतिम क्षणों तक भगवान शिव का जाप करने वाले बहादुर राजा के इस बलिदान से हिन्दू मराठाओ में अपने राजा के प्रति सम्मान मुगलों के प्रति आक्रोश और बढ़ गया.
अगले २७ सालो में छत्रपति राजाराम ,महारानी ताराबाई ,छत्रपति शाहू,सरदार धनाजी जाधव और आदि सरदारोंने अपने पराक्रम से औरंगजेब को बहुत क्षति पहुंचाई। औरंगजेब के अंत के बाद मचे कोलाहल में मराठो ने अपनी पताका दिल्ली तक फहराई।भविष्य में पूरे भारत पर अपना अधिपत्य स्थापत करने वाले मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के रक्त के साथ इस तरह के बर्ताव की ख़बर ने, न सिर्फ़ मराठा स्वराज्य, बल्कि पूरे देश के लोगों के भीतर ऐसी चिंगारी उत्पन्न की, जिससे बाद में मुगलों का पतन होना शुरू हो गया। और मराठा स्वराज्य से साम्राज्य तक का उत्कर्ष आरम्भ हुवा।
संभाजी का मतलब ही संघर्ष हे ! – शेजवलकर.
हिन्दूोओ पर हो रहे अत्त्याचार,का मूल ही हमारी अति सहिष्णुता हे !! राजवाड़े.